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विषय भोग अरु पाप की, है शिक्षा सर्वत्र । धर्म हीनसा गुण जहां, सौख्य शान्ति क्यों तन्त्र ॥ १२० %A4% A
A RAK श्रीपाल रास (४) बड़ों की सेवा, उनका आदर, छोटों के प्रति स्नेह रखना । (५) प्रत्येक काम को समय पर और अच्छे ढंग से करना । (६) घर और वस्त्रों को साफ-सुथरे और व्यवस्थित रखना। (भ) अपने स्वास्थ्य और सौन्दर्य का ध्यान रखना। (८) भोजन बनाने, और गृह-प्रबंध की कला का ज्ञान रखना। (९) सहनशीलता और संयम रखना । (१०) अपने आप को देखो । दूसरों की निंदा न करो। (११) पति-देव पर पूर्ण विश्वास रख, सदा उनकी आज्ञाओं का पालन करो। (१२) भार बाहर से आवे, तो उनका उठकर मुस्कराते हुए स्वागत करो।
(१३) पति यदि अधिक खर्च करते हों, या उनकी भूल हो, तो वह किसी दूसरे के सामने प्रकट न कर, उन्हें एकांत में यही शांति और नम्रता से समझाओ ।
((१४) पति के सोने के बाद सोओ और उन से पहले जागो । सोते समय उनकी पग-चंपी, सेवा शुश्रूषा करो।
(१५) यंत्र-मंत्र वशीकरणादि के चक्कर में न पड़ो। इससे पति व परिवार का ___ चश होना तो दूर रहा, किन्तु भेद खुलने पर विश्वास उठ जाता है !
(१६) अपनी सास या परिवार के वृद्ध जनों के विना पूछे, या उनके मना करने पर कोई काम न करो । रोज सास-जेठानी या परिवार की वृद्ध महिला की पगचंपी करो ।
(१७) पति विदेश में हों, उस समय भूमि-शयन करना, सामान्य आभूषण पहनना, यथाशक्ति तप करना । बाजार से कोई वस्तु मंगवाना हो, या अपने पति से कोई सामान मंगवाना हो तो वह चुपचाप सीधा अपने पास न मंगवा कर उसे अपनी सास या बड़ीलों से मंगवा कर उपयोग में लेना |
मदनसेना! उपरीक्त शब्दों को अच्छे बड़े अक्षरों में लिख, अपने भवन में लटका दना, उन __ का बार बार मनन-चिंतन कर उसी प्रकार आचरण करोगी तो तुम सुखी रहोगी। ऋतु (मासिक) धर्म का पालन
मदनसेना ! ऋतुस्त्राव-रजोदर्शन को मासिक-धर्म कहते है। स्वास्थ्य के लिये इस का मास के अंत में होना आवश्यक है। यदि मासिक-धर्म ठीक समय और विना कष्ट के उचित मात्रा में न हो तो शीन हो उसकी चिकित्सा करना चाहिये । इसमें संकोच और विलब करना बड़ा घातक है।