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________________ शासक हो धार्मिक अगर, जनता धार्मिक होय । शासक धर्म विहीन यदि प्रजा धर्म दे खोय । ११८ॐRHANIबर श्रीपाल राह आज वही पराया अनजान घर मुझे अपना ज्ञात होता है । इस में घबड़ाने की कोई बात नहीं है । तू धीरज, स्नेह, प्रयत्न, परिश्रम और सेवा से एक अपरिचित धर को भी स्वम बना सकती है। मदन सेना ! आज मैं तुम्हें अपने जीवन की कुछ अनुभूत बातें बतलाती हूँ। इसे तू बड़े ध्यान से सुन, उस पर बार बार मनन कर । यदि मेरी सीख को तुम अपने हृदय में अपित कर उसका यथार्थ भली प्रकार पालन करोगी, तो तुम जहां भी जाओगी यहां सुख से रहोगी। स्त्रीपुरुष तुम्हारा मान-सन्मान कर तुम्हें प्यार करेंगे । परिवार के लोग तुम्हें देख फूले न समाए मे । जीवन में कभी तुम्हें आँसू बहाने का अवसर न आयगा । सदा हंसमुख रह कर मधुर बोलोः जीवन में सुखी होने का महत्त्वपूर्ण एक सरल उपाय है, सदा हंसमुख रहकर मधुर भाषण करना । मुस्कराहट एक जादू मोहनी मंत्र है । सुन्दर वस्त्राभूषण की अपेक्षा हसमुख सूरत विशेष आकर्षक है। हंसमुखी प्रसन्न महिला दूसरों का नहीं, स्वयं अपना ही मला करती है। इस से सदा मन हलका रहता है और स्वास्थ्य पर बुरा असर नहीं पड़ता। तुम सदा हंसमुखप्रसन्न रहने की आदत डालो। जिस से बोलो. हंसकर मिठास से बोलो | ताजे फूल की तरह खिला मुह रखने की कला जो लड़की जानती है, वह सदा लोकप्रिय बन सुखी रहती है। सारा परिवार उस के वश में रहता है। कागा का को लेन है, कोयल कोको देत । मीठे वचन सुनाय के, मन सब को हर लेत ॥ कर्कशास्त्री जीवन का सबसे बड़ा दण्ड है । मृदु, कोमल, सहनशील और हंसमुखी नारी जीवन का सब से बड़ा वरदान है। तेज जबान की स्त्री को कोई पति, कोई मनुष्य नहीं चाहता । मदनसेना ! मैं कितनी ही स्त्रियों को जानती हूँ। उनका त्याग, तप, परिश्रम और सेवा उच्च कोटि की हैं; पर न वे सुखी हैं, न उनके पति या ससुराल के अन्य लोग सुखी हैं। कटु भाषिणी झगड़ाल ककंशा नारी से सब जान बचा कर दूर भागते हैं। उससे घृणा करते हैं । परिवार की दृष्टि से न गिरो कई बेसमझ अज्ञान महिलाए अपने भर्तार और घर की आय-व्यय का विचार न कर, वे विशेष वस्त्रालंकार शृगार की वस्तुओं के लिये मरती हैं, कलह कर बैठती हैं। इसी मनमुटाव के कारण वे शनैः शनैः अपने परिवार और समाज की दृष्टि से गिर जाती हैं। महिलाओं के लिये पति से बढ़कर कोई दूसरा गहना नहीं । बेटी ! याद रखो, सुख भड़कीले सुन्दर वस्त्रालंकारों में नहीं, सुख है घटक-मटक शान शौकत से बचकर अपने पति की आय के अनुसार जो समय पर मिले, उसे पाकर, संयम से रहने में ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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