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___ अनुभव अमृत स्वाद मु, निश्श्रयरूप-जणाय | समदर्शी रे जीवड़ा, शिव गति को पार ।। ११६ SHAR***SHARA
श्रीपाल रास नाटक नव दोघां रे, तिहां पात्र प्रसिद्धां रे, जाणे ए लोधां मोले सरग थी रे | बहु दासी दास रे, सेवक सुविलास रे, दीधा उल्लासे सेवा कारणे रे ॥८॥
महाकाल राजा ने एक निमंत्रण पत्रिका भेज, दूर दूर से अनेक राजा-महाराजा जानिबन्धु और अपने सगे सम्बन्धियों को आमंत्रित कर गीत-गान, उत्सव-महोत्सवादि बड़ ठाठ से अपनी प्रिय पुत्री रंभा सी अति सुन्दर मदनसेना को श्रीपालकुंवर के साथ व्याह दी ।
___ कन्यादान के समय राजा ने बहुमूल्य हीरे, पन्ने, माणिक, मोती, आदि अनेक प्रकार के रत्नजड़ित आभूषण, सुन्दर रेशमी-जरी के वस्त्र, दास-दासियां और अच्छे प्रतिष्ठित कलाकारों की वन नाटक मंडलियां कुंबर को सादर भेंट की। स्स भर दिन केता रे, तिहां रहे सुख वेता रे, दान याचक ने देना बहु परे रे। अमने बोलावो रे, हवे वार नलागे रे, कहे कुंवर जावो अम-देशांतरे रे ॥९॥ नृप मन दुःख आणे रे, केम राखं पराणे रे, घर इम जाणे न बसे पाहुणे रे। पुत्री जे जाइ रे, ते नेट पराई रे, करे सजाई हवे बोलाववा रे ॥१०॥ एक जुगअलंभ रे, जे देखी अचंभ रे, चोखठ कुवा थंभे सुन्दर सोहतुं रे। कारीगरे घड़ियारे, मणि माणिक जड़या रे, थंभ ते अड़िया जइगयणांगगे रे ।११।। सोवन चित्राम रे, चित्रित अभिराम रे, देखिये ठाम आम तिहां गोखड़ा रे! धज मोटा झलके रे मणि तोरण चलके रे, दलके चामर चिहुँ दिशे रे ॥१२॥ भूइ सातमीए रे, तिहांचढ़ी बोसमीए रे, बेसिने रमिये सोवन सोगठे रे । बहु छंदे छाजे रे, बाजा घणां बाजे रे, वहाण गाजे रयुं समुद्र मां रे ॥१३॥ पूरे ते स्तने रे, राजा बह जतने रे, सासर वासो मन मोटे करे रे । बोलाबी बेटी रे, हियड़ाभरी भरी भेटी रे, शीख गुण पेटी दीधी वह परे रे ।१४।
श्रीपालकुंवर बड़े आनंद से मदनसेना के साथ अपने ससुराल में ठहरे थे। नाटक मंडली प्रतिदिन अनेक प्रकार के खेल, आकर्षक संगीत कला से उनका मनोरंजन करती थी। कुंबर बड़े गुणानुरागी, हंसमुख और दानी थे, उनके द्वार से कोई भी व्यक्ति खाली डाथ, बना अतिथि-सत्कार के नहीं जाता था।