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ज्योति झल्यती सदा, चेतन की सुखकार । शक्ति अनंत हो सिद्धमय, ध्याता भवको पार ।। हिन्दी अनुवाद सहित RECOREAKICRORSCI RREARRC ११५ तक पूर्ण करके रहूँगा" ऐसी दृढ प्रतिज्ञा, सतत प्रयत्न, आत्म-संयम, मन पर विजय, ब्रह्मचर्य और सर्वज्ञ देव दर्शित मार्ग का आचरण करने की भावना हो उज लडके को ही अपनी कन्या दें।
(५) वित्तः--बांदी, सोने के सिक्के, बाह्य आडंबर में फंस कर कन्यारत्न को अपने हाथों से न गवाएं । पेसा आज है, कल नहीं । किसी अच्छे गुणानुरागी, स्वस्थ, कलाकार, कमाउ, संतोषी लडके को ही अपनी कन्या दें।
(६) वपुः - कुरूपता वह बला है, जो जीवन के आनंद को नष्ट कर देती है। कमलनयन, लम्बी नाक, विशाल वक्षस्थल, लम्बी भुजाएं, स्वस्थ हृष्ट-पुष्ट शरीर मानव के मन की प्रफुल्लित कर वंश-परम्परा को चमका देता है। पैसे का लोभ और चापलुस स्वार्थी परिवार का मोह छोड़ कर अच्छे सुन्दर स्वस्थ गौरवर्ण, गठीले बदन वाले लडके को ही अपनी कन्या दे।
(७) वय अवस्थाः -- कुष्ठरोग उतना घातक नहीं जितना कि एक अनमेल विवाह । कुष्ठरोग किसी एक ही व्यक्ति को चंद दिन सता, उस के प्राण लेकर रह जाता है। किन्तु बाल और वृद्ध विवाह कन्या तथा उस के संरक्षकों को जन्म भर बडी बुरी तरह कुचलता रहता है। संभव हैं, पैसे का लोभ, श्रीमंत सगे का मोह भविष्य में बड़े बुहों के नाम को धब्या भी लगा दे । अतः स्वस्थ और समान वय के लडके को ही अपनी कन्या दें।
राजेन्द्र ! मैं एक चलता मुसाफिर हूँ । अनजान व्यक्ति को कन्या देना उचित नहीं । राजा ने कहा-कुंवरजी ! “पूत के पैर पालने में देख पडते हैं।" हंस और बुगले का अन्तर कहीं छिप सकता है ? कदापि नहीं । हीरे की खान से प्रायः हीरा ही निकलना संभव है, सज्जन व्यक्ति सदा आत्मश्लाधा से दूर रहते हैं। आपका बल पुरुषार्थ, गुणानुराग, विनम्र स्वभाव और मधुर भाषण प्रत्यक्ष कुलीनता के प्रदर्शक हैं । महोत्सव मंडावे रे, साजन सहु आवे रे, धवल गवगवे मंगल नरवर रे रूपे जिसी मेना रे, गुण पार न जेना रे, मदनसेना परणावी इणी परे रे।।६।। मणि माणक कोड़ी रे, मुक्ता फल जोड़ी रे, नस्पति कर जोड़ी दिये दायजो रे। परेपरे पहिगवे रे, मणि भूषण भावे रे, पार न आवे जस गुण बोलनांरे ।