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________________ नित्यानित्य विचारिये, भेदाभेद सहाय । सापेक्षा सु आत्म ने, समज्या सु सुखदाय ॥ ११४ * * AHARANA श्रीपाल रास का बदला भलाई से दें । खेद है कि मैंने आपको बड़ा कष्ट दिया । फिर भी आप मुझे अपनी कन्या देना चाहते हैं। “पानी पीजे छानवर, सगा कीजे जान कर" कन्यादान में उतावलापन उचित नहीं । मानव जल छान कर पीते है, उसी प्रकार उन्हें अपनी कन्या का सम्बन्ध भी सोच समझ कर किसी अच्छे लड़के के साथ करना चाहिये । कन्या मिट्टी का खिलौना नहीं, जो कि भलते के हाथ सौंप दी जाय । कुलं च शीलं च सनाथता च, विद्या च वित्तं च वपुर्वयश्च । वरे गुणा सप्त विलोकनीयास्ततः परं भाग्य वशा हि कन्या ।। कन्या कहां है? (१) कुल:-जहां अच्छे सदाचारी, धर्म-ध्यानमें तत्पर, देश, समाज और अपने परिवारकी भलाई में तन मन धन और अपने प्राण अर्पण करने वाले स्त्री-पुरुष हों उसी उअम घराने और कन्या के समान जाति के लडके को ही अपनी कन्या दें। (२) शील–स्वभाव एक ऐसी वस्तु है कि वह जीवन में सहज ही फूल और कांटे पैदा कर देता है । हंसमुख सूरत, सहृदयता और निष्कपट सत्य व्यवहार मानव को फूल सा आकर्षक, यशस्वी बनाता है, तो चिडचिडापन धूर्त सनकी कटु स्वभाव, मानव को महान दुःखी कर देता है । अतः वर को प्रकटयो गुप्त रूप से पूर्णतया परीक्षा करके ही किसी अच्छे सुशील लड़के को ही अपनी कन्या दें। (३) सनाथता--मन बड़ा ही चंचल हैं, यह अवकाश पाते ही इधर-उधर भटकने लगता है। यदि इस पर बड़े-बुढ़ों का अंकुश (नियंत्रण) न हो तो संभव है, यह मानव को पतन के गहरे गर्न में ढकेल दे । अतः जहां अच्छे संस्कारवान, प्रेमी सासु, ससुर, देवर, जेठ, ननंद-भोजाई आदि परिवार हो वहां अपनी कन्या दें। (४) विधा-किताबी कीड़े, स्ट्ट या अपने नाम के पीछे किसी विद्यापीठ, महा विद्यालय, युनिवरसिटी की उपाधि की पूछ लगाने वाले श्रद्धाहीन लडकों से सदा सावधान रहें। भले लडका निर्धन, साधारण पढ़ा-लिखा हो, किन्तु उस में सत् कार्य, सद्ज्ञान और सन्मार्ग की अभिलाषा, “मैं जिस कार्य में हाथ डालूंगा उसे मरते समय
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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