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________________ अखंड निर्मल सत्य तु, परम महोदय गेह । अन्तर दृष्टि देखजे, वैमा हेतु इस देह । ११२- SA H ARAN-श्रीपाल रास फूल बिछाया फूटस, पंथ करी छटकाव । गज तुरंग शणगारिया, सीवन रूपे साव ॥ ८ ॥ भयत्रस्त मानव को किसी साथी के लिए बिना एक पैर भी आगे बढ़ना बड़ी कठिन समस्या है, तो भला धवलसेठ को तो बड़ा लम्बा चौड़ा सागर प्रवास करना था। वे श्रीपाल कुचर का साथ छोड़ना नहीं चाहते थे। उन्होंने बड़ी नम्रता से कहा, कुंवरजी ! अब अपने को यहां से रत्न-द्वीप पहुँचना है । प्रवास बहुत लंबा है, कृपया __ आप विलंब न करें । भाग्यवान सिद्ध पुरुष को कौन नहीं चाहेगा ? आए श्रीमान तो जहां भी पधारेंगे जनता आपका हृदय से स्वागत करेगी। श्रीपालकुंवर ने कहा, सेठजी ! बन्चर नरेश का विशेष आग्रह है, अतः चलने समय किसी का दिल तोड़ना ठीक नहीं । कुवर ने नगरप्रवेश की स्वीकृति प्रदान कर दी। महाकाल फूले न समाए । उन्होंने शीघ्र ही आगे जाकर, अपने अनुचरों को श्रीपाल कुंवर के स्वागत की सूचना दी। नगरके चौराहों पर सुन्दर कलापूर्ण द्वार बनवाए, स्थान स्थानपर रंग-बिरंगी ध्वजाएं बांधीं, घर दुकान हाट हवेलियां हीरे, पन्ने, माणिक, मोती, पुखराज, मूंगे आदि रत्नजड़ित तोरणों से सजाई गई। चारों ओर सुगन्धित जल छिड़का, फूलों के हार रेशमी झूलें, बढिया जीन, सोने चांदी के आभूषणों से मतवाले हाथी, काबुल घोड़ों को अलंकृत कर स्वागत की तैयारी की गई। दूसरा खण्ड-पांचवीं ढाल (राग सिन्धूडो-चित्रोडा राजारे ) विनती अवधारे रे, पुरमांहे पधारे रे, महोत वधावे बब्बर रायन रे । कुंवर बड़भागी रे, देखो सोभागीरे जोवा रद लागी, पगपग लोकने रे॥१॥ घर तेड़ी आव्या रे, साजन मन भाव्या रे, सोवन मंडाव्या आसन बेसणां रे। मिठाई मेवा रे पकवान कलेवा रे, भगति करे सेवा, बब्बर बहु परे रे ॥२॥ भोजन घृत गोल रे, उपर तंबोल रे, केसर रंग रोल करेवली आंटणा रे। सवि साजन साखेरे, मुखे मधुरू भाखे रे, अंतर नवि राखे काई प्रेममारे ॥३॥ दिये कन्यादान रे, देइ बहुमान रे, परणी अम मान वधारो वंशनो रे ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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