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अनंत गुण पर्याय मय, चेतन द्रव्य सदाय । श्रवण करे बहुमानसे, प्रथम किया सुखदाय । ११०
%*HATARRA- श्रीपाल रास जी हो बंधन बबर रायना, जी हो छोड़ावे तेणी वार । जी हो भूषण वस्त्र पहेरामणी, जी हो करे घणो सत्कार ॥सु. २९॥ जी हो सुभट जिके नाठा हता, जी हो ते गाव्या सह कोष। जो हो भांजे तस आजीविका, सेठ कोप करी सोय ॥सु. ३०। जी हो कुंवर ते सवि राखिया, जी हो दीधी तेहन वृत्ति । जी हो वहाण अटी से माहगं, जी हो सांचवजो एक चिन ।मु० ३१॥ जी हो जे पण बब्बर रायनी, जी हो नागे हतो परिवार । जी हो तेह ने पण तेड़ी करी, जी हो आदर दिये अपार ॥सु० ३२।। जी हो चोथी दाल एणी परे, जी हो बीजे खण्डे होय । जी हो विनय कहे फल पुण्यना, जीही पुण्य करो सह कोय ।सु. ३३॥
धवल सेठ ने दांत पीसते हुए तलवार खींच कर महाकाल से कहा, चोल : अब तू कहां जायगा ? बेचारा राजा कांप उठा किन्तु उसी समय श्रीपालकुवर ने पीछे से सेठ का हाथ पकड़ कर कहा, बस महानुभाव ! अब आप रहने दें, अधिक कष्ट न करें। आप का बल-पुरुषार्थ जनता से छिपा नहीं ! एक बन्दी पर प्रहार करना महान् अपराध, कायरता का सूचक है ।
श्रीपालकुंवर ने बच्यर नरेश महाकाल को बन्धन से मुक्त कर बड़े आदर म उन्हें अपने पास बैठाया और उनका बहुमूल्य बख-आभूषणों से सत्कार कर, कहा, श्रीमान्जी ! समर भूमि से प्राणा लेकर भागे हुए, बेचारे गरीब आपके अनुचारी का ध्यान रखना ! कहीं वे नौकरी से अलग न कर दिये जाय । कुंवर के कहने से सभी सैनिक सन्मान के साथ रख लिये गये।
धवल सेठ के अनुचर भी आशा लेकर सेठ की सेवा में उपस्थित हुए थे, किन्तु सेठ ने उन्हें बुरी तरह से फटकार कर अपने यहां से अलग कर दिया। वे निराश हो, मुंह ताकते रह गये । अन्त में उन्हें गिडगिडाने देख श्रीपालकुवर ने उनको अपने ढाई सो जहाज की सुरक्षा के लिये नौकर रख लिया ।
श्रीपालरास, मूल के लेखक श्रीमान विनय विजयजी महाराज कहते हैं कि इस रास के दूसरे खण्ड की यह चौथी हाल सम्पूर्ण हुई । श्रीपालकुंवर की सफलता का रहस्य, प्रबल