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________________ कथन करे जीव द्रव्य का, गुण पर्यायधार | द्रव्य और पर्याय, नित्यानित्य विचार । हिन्दी अनुवाद सहित OMREKACHAKA२ १०९ जी हो महाकाल कोप्यो तिसे, जी हो हलकारे निज सेन । जी हो मुके शस्त्र झड़ो झड़े, जो हो राता रोष रसेन || सु. २३ ॥ जी ही बूठा तीखा तीरना, जी हो गोला ना केइ लाख । जी हो पण अंगे कुंवर तणे, जी हो लागे नहीं समख ॥ सु. २४ ॥ जी हो आकर्षी जे जे दिशे, जी हो कुंवर मुके बाण । जी हो सम काले दस बीस ना, जी हो तिहां छंडावे प्राण सु. २५|| जी हो सैन्य सकल महाकाल नु, जी हो भागी गयो दह वट्ट । जी हो नृप एकाकी कुंबरे, जी हो बाध्यो बंध विघट्ट || सु० २६ ।। जी हो बांधी ने निज साथ मां, जी हो पासे आण्यो जाम । जी हो बंधन छोड़या सेठ ना, जी हो रक्षक नाठा ताम ।। सु० २७ ।। श्रीपालकुंवर के करारे शब्द सुन मारे रोष के महाकाल राजा की आंखे लाल हो गई । उसने उसी समय अपने प्रधान मंत्री को रणभेरी फूकने का आदेश दिया और स्वयं भी समरभूमि में कूद पड़ा । चारों ओर बागों की वर्षा, तोप बन्दूकों की गोले और गोलियों की बोछार होने लगी । श्रीपालकुंवर आत्मविश्वास और अनन्य श्रद्धा से श्री सिद्धचक्र का स्मरण कर निर्भय हो आगे बढ़ते चले गये, उनका किंचित मात्र भी बाल बांका न हुआ। किन्तु उनके प्रत्येक वार से दस बीस वीर योद्धा धराशायी हो यमपुर पहुंचने लगे। थोड़े ही समय में कई सैनिक वीर गति को प्राप्त हुए, तो कई बेचारे अपने प्राण ले उल्टे पैर भाग निकले । महाकाल राजा अकेला मुंह ताकता रह गया । श्रीपालकुंवर ने उसे बंदी बना, शीघ्र ही धवल सेठ के सामने ला खड़ा किया । महाकाल की यह दुर्दशा देख पहरेदार सिपाही तो दूर से ही छू मना गए । कुंवर ने सेठ के बन्धन काट कर उन्हें अपने पास आसन पर बैठाया । जी हो खड्ग लई महाकाल ने, जी हो मारण धायो रे सेठ । जी हो कहे कुंवर बेसी रहो. जी हो बल दीठो तुम ठेठ॥सु. २०||
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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