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________________ शुद्ध चैतन्य स्वभाव को, बन्दो चार चार । ज्ञानादि आधार से, चेतन पूज्य विचार । १०८ 5* * *RAMREK H A श्रीपाल रास दुबारा फिर कहा, आपने ठीक तरह से समझ तो लिया न ? सेट की स्वीकृति मिलने ही, कुबर ने दो भले आदमी की साक्षी से लिखापढ़ी की और वे उसी समय ढाल तलवार, धनुष बाण आदि उठाकर महाकाल राजा के पीछे दौड़ पड़ । जी हो जई बब्बर बोलावियो, जी हो वल पाको वडवीर । जी हो शस्त्र सेन भुजबल तणो, जी हो नाद उतारूं नीर ॥ सु० १८॥ जी हो तुज सरीखो जे प्राणो, जो हो पहोंती अम घर आय । जी हो सुखड़ली मुज हाथनी, जी हो चाख्या विण जाय ।। सु. १९॥ जी हो महाकाल जूए फरी, जी हो दीठो एक जुबान | जी हो झाझानी परे झुझती, जी हो लत्रण का निधान ।। सु. २०॥ जी हो तू सुन्दर सोहामणो, जी हों दीसे यौवन वेश। जी हो विण खूटे मरना भणी. जी हो कांई करे इद्देश ॥ सु. २१ ॥ जी हो कुंवर कहे संग्राम मां, जी हो वचन किश्यो व्यापार | जी हो जौधे जीध मल्या जिहां, जी हो तिहां शस्त्रे व्यवहार ॥ सु० २२॥ श्रीपालकुवर ने दूर से पुकार कर कहा, ठहरो! ठहरो !! श्रीमान्जी आप चुपचाप कहां भागे जा रहे हो ? एक शूरवीर अतिथि को जय-पराजय का अन्त किये बिना लौटना उचित नहीं | आप इस समय वापस लौटकर जरा मेरे भी नो दोचार हाथ का मजा चख लें ।। महाकाल श्रीपालकुवर की सिंहगर्जना सुन चकित हो गया। युवक ! तुम अभी एक नादान यालक हो, चन्द स्वर्ण के सिक्कों के बदले आवेश में आ अपने कीमती प्राणों से हाथ न धोओ ! ___मुझे तुम्हारा रूप, सौन्दर्य, स्फूति, निर्भयता और अनौखा साहस देख जरा दया आती है । अब भी समय है, जाओ तुम वापस लौट जाओ । श्रीपालकुंवर ने मुस्करा कर कहा, राजेन्द्र ! रण-भूमि में दया और बातों का जमाखर्च उचित नहीं | समर-भूमि में तो शस्त्रों का उत्तर शस्त्र से देना ही क्षत्रियों का भूषण और सच्ची वीरता है ।
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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