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बुझी चाहे जो प्यास को, है बुझन की रीत । पावे नहीं गुरु गम विना, एहो अनादि स्थिन १०६ KARNERARASHARE श्रीपाल रास जी हो सैन्य सबल तव सज करौ, जो हो आव्यो बब्बर राय ।।मु० ९॥ जी हो राज तेज न शक्या सही, जी हो दीधी सुभटे रे पूछ । जी हो मार पड़ी तब नासतां, जी हो बाण भरी भरी मूठ ||सु० १०॥ जी हो बांध्यु झाली जीवतो, जी हो रुख सरीखो सेठ । जी हो बांह बेहु ऊँची करी, जी हो मस्तक कीg हेठ ॥सु० ११॥ जी हो रखवाला मुकी तिहां, जी हो बलियो बन्चर राय । जी हो तव बोलावे सेठने, जी हो कुंवर करिय पसाय ||सु. १२ ॥
जहाजों के लंगर डालते ही बञ्चरकूल के बंदरगाह पर सौदागरों की भीड़ लग गई। किसी ने जल भरा, लकडी कडे खरीदे, किसी ने आटादाल, घी शक्कर आदि आवश्यक सामान की व्यवस्था की। चारों ओर मंडी लग गई। हजारों मनुष्यों का कोलाइल सुनकर बन्दरगाह के राज्य कर्मचारी भी यहां आ पहुँचे, उन्होंने सभी जहाजों का निरीक्षण कर धवलसेठ से कर की मांग की। सेट ने उनकी बात को सुनी-अनसुनी कर दी। राज्य कर्मचारियों ने सेठ से कहा, श्रीमानजी आप राज्य आज्ञा का भंग न करें । अन्यथा ऐसा न हो कि हमें आपको बन्दी बनाकर आपकी सारी संपत्ति राज्याधीन करना पड़े।
धवल सेठ ने आंखे बदलकर कहा, अरे ! जमादार, क्या देखते हो ? सेठ के मुह से आवाज निकलते ही उधर विचारे गिनती के राज्य कर्मचारियों पर डण्डों की वर्षा होने लगी। वे लोग अपने प्राण लेकर भागते हुए बबरनरेश महाकाल की शरण पहुँचे।
महाकाल अपने अनुचरों का अपमान सहन न कर सका । उसने उसी समय अपनी विशाल सेना के साथ धवलसेठ पर चढ़ाई कर दी। बात की बात में चारों ओर मारकाट मच गई। रंग में भंग हो गया, सौदागरों के प्राण सूख गये । जनता देखती रह गई। महाकाल राजा के सामने, धवलसेठ के योद्धाओं के पैर टिक न सके । वे अल्प समय में ही रणभूमि से दुम दबाकर भाग गए। सेठ को उल्टे मुंह की खाना पड़ी। वे अपनी करारी हार देख बे-भान हो गए । उनका सिर चकरा गया। राजा ने शीघ्र ही उन्हें बंदी बनाकर उनकी सारी संपत्ति अपने हस्तगत कर ली और अपनी राजधानी में वापिस लौटते समय सेवकों को आदेश दिया कि इस कैदी को शीघ्र ही बांधकर उल्टे मुंह किसी झाड़ से लटका दिया जाय ।