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बन्दु चेतन द्रव्य को, पुद्गल द्रव्य से भिन्न । आनन्दघन प्रभु प्रेम में स्थिरोपयोग में मैं लीन । हिन्दी अनुवाद सहित ** १०५
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प्रमाद और श्री सिद्धचक्र की आराधना से विमुखता का कटु- फल । क्या आप फले फूले रहना चाहते हैं ?
जीवन में अवश्य एक बार सविधि सिद्धचक्र - आराधन ( नवपद ओली ) करें । अपने परिवार, प्रिय मित्रों को आराधना करने की सत्प्रेरणा करें ।
जैसे चांद के बिना रात, सुगन्ध के बिना फूल, नमक के बिना भोजन, संतान के बिना स्त्री की गोद, प्राण के बिना देह और परिवार के बिना भव्य भवन सूना लगता है वैसे ही श्री सिद्धचक्र की आराधना किये बिना आपका मानव जीवन सूना है । देखो ! श्रीपालकुंवर का भाग्य आगे आगे कैसा साथ देता है ।
धवल सेठ का संकेत पाकर जहाज चालकों ने शीघ्र ही अपने जहाजों के लंगर उठाये और पालें तान कर भरूच से आगे की ओर प्रयाण किया, उस समय हवा इतने वेग से चली कि पांच सौ जहाज घण्टों की राह मिनटों में पार करने लगे । श्रीपालकुंदर चारों ओर से लहराते सागर में भीमकाय जल- हस्तियों की उखाड़ पछाड़, रंगविरंगी मछलियां, भर्ती के समय बड़े बड़े मगरमच्छ और सुसुमार जाति के करोड़ों मस्त मच्छों की भागदौड़ से उड़ते जल के कणों का सुहावना दृश्य देख आनन्दविभोर हो गए ।
जहाजों की द्रुत गति, तेज चाल देख हजारों प्रवासी, सैकडों व्यापारी आनन्द से फूले न समाते थे । वे मन ही मन अपने व्यवसाय की अनेक रूपरेखाएं बना बंदरगाह की प्रतीक्षा कर रहे थे । उसी समय जहाज चालकों ने वस्त्र से संकेत कर सूचना दी कि अब चच्चरकूल निकट आ रहा है। वहां पर हम लोग लंगर डालेंगे । जनता अपने आवश्यक पदार्थ लकड़ी, कोयला, मीठा जल, भोजन आदि की व्यवस्था कर लें । जी हो तस बंदर मांहि उतरी, जी हो इंधण लिये लोक | जी हो धवल सेठ कांठे रह्या, जी हो साथै सुभटना थोक ॥ सु० ६ ॥ जो हो कोलाहल ते सांभली, जी हो आव्या अति सुपराण । जी हो दाणी बम्बर रायना, जी हो मांगे बब्बर दाण || सु० ७ ॥ जी हो सेठ सुभट ने गारवे, जी हो दाण न दिये अबुझ । जी हो तब तिहां लाभ्यं तेहने, जी हो मांहो मांहे झूक ॥ सु० ॥ जी हो सेठ तणे सुभटे हण्या, जी हो दाणी नाठा रे जाय ।