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एक विपय ने जीतता: जोस्यो मो संसार । नरपति जीतता जोतिये, दल पुग्ने अधिकार हिन्दी अनुवाद सहित - - -
- १०३ धवलसेठ श्रीपाल कुंवर का बल पुरुषार्थ देख चकित हो गये। मान गये कि यह निश्चित ही कोई एक सिद्धपुरुष है । इसे अपने साथ लेना मानों अपना भाग्य चमकाना है। धवलसेठ ने उसी समय एक लाख स्वर्णमुद्राएं श्रीपालकुंवर के चरणों में रख, हाथ जोड़कर प्रार्थना की ।
कुंवरजी ! आप एक अनजान परदेशी हैं । इधर उधर मारे मारे न भटक कर यदि अपने साथ रहे तो अच्छा है | धंधे पानी से लग जाओगे । यहां आपको अनेक सुविधाएं और वेतन मिलेगा। आपको मालूम है ? मेरे यहां दस हजार आदमी पलते हैं, उसमें कई वीर योद्धा है। प्रत्येक को में वार्षिक एक हजार स्वर्ण मुद्राएं वेतन देता हूँ | मेग आपसे अनुरोध है कि आप इस स्वर्णावसर को अपने हाथ से न गयाएं ।
कुवर कहे हूं एकलो, लेऊं सर्वनो मोल । ए सर्वेनुं एकलो कारज करूं अडोल ॥५॥ ते बचें ले की, खेड कहे कर जोड | अमे वणिक जन एकने, किम देवाय कोड़ ॥६॥ लेवर कहे सेवक थई, दाम न झालं हाथ । पण देशांतर देखवा, हं आधुं तुम साथ ॥७॥ भाई लइ बहाण मां, दा मुज बेसण ठाम ।
मास प्रते दीनार शत, भाडु परदयु ताम ॥॥ धवल सेठ के घमण्डी शब्द सुन श्रीपाल कुंवर ने कहा, सेठजी धन्यवाद | आप मुझे मुंह मांगा श्रम देंगे। यह आपकी बड़ी उदारता है। मेरे अकेले का वेतन उतना ही होगा जितना कि आपके दसहजार अनुचरों का । सेठ ने अपनी अंगुलियों पर कुछ गिनती कर कहा, अरे ! आप यह क्या कह रहे हैं ? एक करोड रुपये बाप रे बाप ! श्रीपाल कुंवर ने कहा, याद रखियेगा ! में आपका इतना द्रश्य लूंगा, तो समय आने पर उतनी ही सेवा भी दंगा। अन्यथा चन्द गिनती के सिक्कों में मैं अपने आपको बेचना नहीं चाहता । 'पराधीन सपने सुख नाहि" जीवन के विकास में परतन्त्रता सदा बाधक है । मेरा उद्देश्य है, देश-विदेश का प्रवास कर विशेष ज्ञान और अनुभव प्राप्त करना । आप अपने जहाज में मुझे कुछ स्थान देंगे ? प्रतिमाह क्या किराया लेंगे ? बस, किराये का नाम सुनते ही धवल सेठ के मुंह से लार टपक पडी । वे मन ही मन कहने लगे, वाह रे वाह ! क्या कहना ( अपनी मूंछे मरोडकर ) अब तो मेरी पांचों अंगुलिया पी में है।