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________________ निरखी ने नात्रयोजना, लेश न विपत्र निदान । गणे काटनी पूतली. ते भगवान समान | हिन्दी अनुवाद सहित १% और 9% या % * * १०१ नकर चलते बने. तो कई अपने दांतों तले दसों अंगुलियां दबाकर प्राणों की भीख मांगते दिखाई देते थे। कई अपना पेट बता, जान लेकर भाग निकले । धवल सेट ते देखता, आव लाग्यो पाय रे देव सरूपी दीसो तुमे, करो अपने सुपसाय रे ॥ घ० १८ ।। महिमा निधि महोटा तुमे, तुम बल शक्ति अगाध रे । अविनय की अजाणते, ते खमजो अपराध रे । अवधागे अम विनती करो एक उपगार रे । थम्भा प्रवहण ताखो, उतारो दुःख पार रे ॥ ६०२० | ६० १९ ॥ 4 अपने सैनिकों की हार देख धवल सेठ के हाथ पैर ठण्डे पड़ गये । अन्त में वे अपना सा मुँह ले श्रीपाल कुंवर के पास पहुँचे । चरणस्पर्श कर गिडगिडाते हुए कहा, दयालु ! क्षमा करें। मेरे नेत्र आप महापुरुष को पहिचान न सके। आप के अपार बल, गम्भीर हृदय का कौन पार पा सकता है! मैं अपनी धृष्टता, उद्दण्डता, के लिये आपसे बार बार क्षमा चाहता हूं। मेरी आप श्रीमान् से एक नम्र प्रार्थना है कि मेरे पांच सौ जहाज समुद्र में रुके हुए पड़े हैं। कृपया उन्हें तिरा कर इस पामरका उद्धार करें | कुंवर कहे ए कामनुं, शुं देशो मुज भाई रे । से कहे लख सनैया, खुतुं काढो गाडं रे ॥ घ० २१ ॥ सिद्धचक्र चित्तमां धरी, नवपद जाप न चूके रे । वड वाहण उपर चड़ी, सिंह नाद ते मुके रे ॥ घ० २२ ॥ जे देवी दुश्मन हती, दुष्ट गई ते दूर रे । वाहन तर्या कारज सर्या, वाजे मंगल तूर रे ॥ ध० २३ ॥ बीजे खण्डे दाल ए, त्रीजी चितमां घरजो रे । विनय कहे वहाण परे, भवियण भवजल तरजो रे । ६० २४ ॥ श्रीपाल कुंवर बड़े निस्पृह, दयालु और परोपकारी थे । वे चन्द गिनती की स्वर्ण मुद्राओं में अपने जीवन की अनमोल घड़ियाँ बदलना महान् अपराध समझते थे किन्तु जैसी देवी वैसी पूजा
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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