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________________ विषय भोग अरु पाप की है शिक्षा सर्वत्र । धर्महोनता गुण जहां, मौरय शांति क्यों नत्र ॥ १०० KA-562-ARA२ श्रीपाल रात केई पेठा हाटमां, केई पोलमां पेठा रे। केई दाटे तस्गा देइ, गलिगा भई दे बैठा रे ॥ ध० १५॥ केई कहे कायर अमे, केई कहे अमे संकरे । केई कहे मागे रखे, नथी अमागे वांक रे ।। ध० १६॥ केई कहे पेटार थी, अशरण अमे अनाथ रे।। मुखे दिये दश आंगली, दे वली आड़ा हाथ रे ॥ ध० १७॥ __ भरूच नगर में सहसा एक महान् भयंकर उत्पात मच गया । गुप्तचर का संकेत पाते ही भूखे सियार के समान सैनिक लोग श्रीपाल कुंघर पर टूट पड़े। चारों ओर मस्त भैसों की मुठभेड़ के समान भगदौड़ मच गई । नुकीले भाले चमकीली तलवारें ढालों से टपकती देख जनता भयभीत हो गई । श्रीपालकुंवर भी बड़ी श्रद्धा से श्री सिद्धचक्र का स्मरण कर बराबर सेनिकों का सामना करते हुए, आगे बढ़ते चले जा रहे थे । नागरिक लोग अपने विशाल भवनों की अटारियों पर चढ़ चढ़ कर घमासान युद्ध देख चकित हो गए। अपने दांतों तले अंगुली देख कहने लगे, ओह ! अपार सैनिकों के बीच अकेले एक नवयुवक के ऐसे फुर्तीले हाथ, अतुल बल, अनोखा साहस तो शायद ही किसी मानव में हो ! देखो ! इस बहादुर नवयुवक ने भवान्तर में कैसे महान शुभ कर्मों का उपार्जन किया है, धन्य है । इसका एक भी प्रहार खाली नहीं जाता है। प्रत्येक निशाना अनेक सिपाहियों को धराशायी कर यमपुर की हवा खिला कर रहता है। जिस ओर भी वीर युवक के पैर बड़े उस ओर मेनिक दल का सफाया । रक्त की नदी बह निकली । जिधर देखो उधर नर-मुण्ड ही नर-मुण्ड दिखाई देते थे। कोई घायल हुआ तो, किसी का हाथ टूटा, पैर कटा, दांत टूटे, कई कायर सिपाही दुम दबा कर नागरिकों की दुकान, मकान और पोल में जा छिपे । बात की बात में सेनिकदल तितर बितर हो गया । धवल सेठ के वीर सैनिक और भरूच के मूछ मरोड़ शूरचीर योद्धाओं के छक्के छूट गए । उन्हें छठी का दूध याद आ गया । जैसे पशु वन-लताओं में उलझ कर किंकर्तव्यविमूढ हो जाते हैं, वैसे ही वे भी लाख प्रयत्न करने पर सफल न हो सके । श्रीपाल कुंबर को अपनी भुज पर बंधी हुई शस्त्र हरणी औषधि के प्रभाव से एक भी घाव न लगा | शत्रु के प्रति उनका हृदय बन से भी अधिक कटोर और शरणागत के लिये फूल सा कोमल था । श्रीपालकुंवर के सामने कई सैनिक अपने मुंह में घाम का तिनका ले गरीब गाय
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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