________________
शासक चाले धर्मपथ, जनता भी उस राह । शासक विषयी लंपटो, जले प्रजा उस दाह ।। हिन्दी अनुवाद सहित RECRUARRECRXX-SARKARIOR ९९
___ याद रखो ! अपने स्वार्थवश किसी प्राणी का वध कर देवी-देवताओं से अनुग्रह की आशा करना एक मात्र जंगलीपन, बुद्धि का अजीर्ण है। संभव है बलिदान होगा तो धवल सेट का ही होगा। उनमें पशुता अभी शेष है।
एक भोले भाले सहृदय परदेसी नवयुवक का विशाल वक्षस्थल, धुटने तक लम्बी भुजाएं, कमल-नयन, चमकता ललाट, निडरता, धैर्य और अनुपम साहस देख सारे सैनिक गण स्तब्ध हो गये | श्रीपाल कुंवर के खरे टकसाली शब्दों से उनके हृदय पर अहिंसा की छाप लग गई । चे युवक का दिव्य तेज सहन न कर सके । सभी इधर उधर बगलें झांकने लगे ।
अपने सरदार की आँख देखते ही एक गुप्तचर भागता हुआ धवल सेट के पास पहुँचा और बड़ी चतुराई से कुछ कानाफूसी कर वह शीघ्र ही वापस लौट गया । सेठ अपने अनुचर का संदेश सुन बडी दुविधा में पड़ गये । ओह ! एक जग से कल के छोकरे में इतना चल, ऐसा दिव्य तेज कि जिसे देख मेरे शुरवीर योद्धाओं को अपनी विजय में कुछ संदेह है। हाय ! मैंने व्यर्थ ही सोया सिंह जगाया । किन्तु अब तो मान-प्रतिष्ठा का सवाल है। साथ ही उधर सारे जहाज रुके पड़े हैं । करना भी तो क्या ? कुछ बुद्धि काम नहीं करती है ।
धवल सेठ उल्टे पैर भाग कर सीधे भरूच नरेश की शरण पहुँचे और उनसे सहयोग प्राप्त कर, श्रीपालकुंधर से युद्ध करने के लिये शूरवीर योद्धाओं की एक विशाल सेना भेजी।
एक लड़ो दोय सैन्य शुं, जब अतुली बल जूझेरे । चहुरा बच्चे बूंखल मच्यो, कायर हीयणा ध्रजे रे ॥ध० १०॥ कुंत तौर तलवारना, जे जे धाले धाय रे। कुंवर अंगे लागे नहीं, औषधी ने महिमाय रे ॥ध० ११|| कुवर ताकी जेहने, मारे लाठी लोढे रे। लह बहता लांबा थई, ते पुहवी ए पोदे रे ॥१० १२॥ भेसा परे रण खेतमां, चिहुँ दिशि धिंगड़ थाय रे । जूड्या जोध वेला जिस्या, शिंगे विलगा जाय रे ॥ १३॥ मस्तक फूट्या केईना, पड्या केईना दांत रे। कोई मुखे लोही वमे, पडी सुभटोनी पांत रे ॥३० १४॥