________________
शासक हो धार्मिक अगर, जनता धार्मिक होय | शासफ धर्मविहीन यदि, प्रजा धर्म दे खोय । ९८ -RAMREHRE
श्रीपाल रास धवल सेठ को तो आपना स्वार्थ सिद्ध करना था वे राजेन्द्र को प्रणाम कर, वहां से खिसक कर सीधे अपने स्थान पर आये और बड़ी देर तक अपने विश्वसनीय सेवकों से बातचीत करते रहे । अन्त में एक सेनिक ने उठ कर कहा, मालिक । मैंने आज सुबह बाजार से लौटते समय बाजार के चौराहे पर एक बड़े सुन्दर नवयुवक को धूमते फिरते देखा था । संभव है वह कोई परदेशी हो । सेट ने अपने सिपाही की पीठ ठोक कर कहा, वाह रे वाह ! सरदारजी धन्य है ! दृष्टि बड़ी तेज है। यदि कोई एक अनजान भोला भाला परदेशी कहीं हाथ लगे तो आप शीघ्र ही उसे पकड़ कर ले आइयेगा | अपन उसका बलिदान कर यहां से चुपचाप चल देंगे । किसी को पता भी न लगेगा कि कहां क्या हुआ। सरदार अपने साथियों को साथ ले परदेशी की खोज में चल पड़ा ।
सुभट सहस दस सामटा, आवे कुंनी पासे रे ।। अभिमानी उद्भत पणे, कडुआ कथन प्रकाशे रे ॥१० ६॥ उठ आव्युं तुज आडग्बु, धवलधिग तुज रूठो रे ! बलि करशे तुजने हणी, म कर मान मन झुठो रे ॥ध० ॥ बलि नवि थाए सिंहनु, भूख है ये विमासे रे। धवल पशु- बलि थशे, बचने कई विरासो रे ||१० ८॥ वचन सुणी तस बांकड़ा, सेठने सुभट सुगावे रे ।
सेठ विनवो रायने, बहोलु कटक अणावे रे ॥१० ९॥
श्रीपाल कुंवर बाजार से घूम फिर कर बड़े आनन्द से वापस अपने निवासस्थान पर लौट रहे थे। सामने से एक सैनिक ने आकर कुंधर से गर्जकर कहा, ठहरो ! कहां भागे चले जा रहे हो? बातकी बातमें उन्हें चारों ओर से हजारों सिपाहियों ने 'आ-घेरा, डांट डपट, गंदे शब्दों की झड़ी लग गई। अब तुम चेत जाओ, तुम्हारे जीवन का किनारा आ-लगा है। हमारे सेठ तुम्हारा बलिदान किये बिना न रहेंगे।
श्रीपाल कुंवर ने मुस्करा कर कहा, वाह रे वाह ! सरदारजी ! कहीं तुम्हार सेट की बुद्धि चरने तो नहीं गई? जरा अपने हृदय और बडे बृदों से पूछो। कहीं सिंह का बलिदान होते अपने कानों से सुना ? या आंखों से कभी देखा है ! कदापि नहीं ।