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___ जगप्रसिद्ध यह क्ति है, व्यापक देश विदेश | जैमा नृप सी प्रजा, संशय का नहि लेश ।। हिन्दी अनुवाद सहित
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RRRRRRR ५७ द्वितीय खण्ड-तीसरी ढाल
( तर्ज-श्रेणिक मन अचरिज थयो ) । धवल सेठ लई भेटणुं, आव्यो नस्पति पायरे । कहे एक नर मुजने दियो, जेम बलि बाकुल थाय रे ॥ ध० ।। राय कहे नर ते दियो, सगो नहीं जस कोय रे । रहि कर जो बही लेहने, जे परदेशी होय रे ॥ घ० २॥ सेवकः चिह दिसो सेठना, फरे नयर मां जोता रे। कुंवर देखी सेठ ने, बात कहे सम होता रे ।। ध० ३॥ दीठो बत्रीश लक्षणो, पुरुष एक परदेशी रे। कहो तो झाली आणीये, शुद्धि न को तस लेशी रे ॥ ५० ॥ धवल कहे आणो इहां, म करो घड़ीय विलंब रे।। बलो देईने चालिये, बाहर नहीं तस बूब रे ॥ घ० ५।।
धवल सेठ बड़े चतुर थे ।वे उसी समय एक सोने का थाल फल फूल, वस्त्र और बहु मूल्य आभूषणों से सजा कर भरूच नरेश की सेवा में पहुँचे। राजा को सादर उपहार भेंट कर उनसे व्यन्तरी के बलिदान के लिये एक बत्तीस लक्षण पुरुष की प्रार्थना की ।
राजा ने कहा, सेठजी! अपने स्वार्थ के लिए किसी निरपराध नर का वध करना मानवता नहीं। किसी अज्ञान स्वार्थी भोपे बडवे म्लेच्छ लोगों के दम झांसे में आकर धर्म के नाम पर या शान्ति की कामना से देवी देवताओंको मुर्ग, पाड़े, बकर आदि का बलिदान देने वाले व्यक्ति अपने आपको धोखा देते हैं। हिंसात्मक बलि देना मानों जान बूझ कर अपने पैरों पर कुठाराघात करना है। जगदम्बा को सृष्टि के सभी जीव समान रूप से प्रिय हैं। मां अपने बच्चों के रक्त से कदापि काल अपने हाथ रंगना नहीं चाहती है ।
सेठ को इतना समझाने पर भी वे न समझे-गिड़गिड़ाने लगे । स्वार्थी कीट क्या नहीं करते हैं ? अन्त में विवश हो राजा ने कहा, कि तुम जानों, तुम्हारी करणी तुम्हारे साथ । किन्तु देखो ! किसी नागरिक पर हाथ साफ न करना !