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ए शत्रु प मित्र मुज, ए सहु मुज परिवार | जब तक बुद्धि एड्यो, तब तक आ संमार !! ९६ *
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*SHAHAHAHA-श्रीपाल रास हवे नांगर उपाया, बड़ा जुंगनी जाम ।
नाल धडू की नाल सवि, हुई धड़ो धड़ ताम ||१४|| सवि वहाणना नांगरी, करे खराखर जोर । पण नांगर हाले नहीं, सबल मच्यो तव शोर ।।१५।।
भरूच बंदर पर रंगबिरंगी ध्वजा-पताकाए और आम के कोमल पत्तो के तोरणों से सुशोभित जहाजों का जमघट सुन दूर दूर से कई लोग उन्हें देखने आये थे, कई अपने सगे-सम्बन्धी जन को विदा देने एकत्रित हो रहे थे, कई लोग जल-मार्ग को यात्रा की उमंग में सेट को मुंह मांगा भाड़ा दे चलने को उतावले हो रहे थे तो कई प्रवास में पीने को मीठा जल खाद्य पदार्थों का संग्रह कर रहे थे। जहाजों के प्रबंध और संरक्षण के लिये हजारों स-शस्त्र सैनिक साथ थे। चारों ओर बड़ी चहलपहल थी । धवल सेठ का संकेत होते ही जुंग जहाज के सातवें खण्ड पर दन से तोप छटी, एक के पीछे एक ऐसे क्रमशः सौ तोपों की आवाज से सारा गगन मण्डल गुंज उठा । लोग अपने कानों पर हाथ रख देखते रह गये । जहाज चालकों ने तो छूटते ही लंगर उटाए, किन्तु चे अनेक प्रयत्न करने पर भी सफल न हो सके। वे अपना सा मुह ले बेठ गये ।।
धवल सेठ झांको थयो, चित्ता चित्त न माय । शीकोतर पूछण गयो, हवे किम कर, माय ॥१६॥
शीकोतर कहे सेठ सुण, चहाण थंभ्या देवी ।
छाड़े वत्रीश लक्षणों, पुरुष तणो बलि लेवी ॥१७॥
जहाज स्तंभित देख धवल सेठ का मुंह उतर गया । वे सुस्त हो चिन्ता के मारे बेचारे ज्योतिषी, भोपे, बड़ों के द्वार खटखटा इधर उधर भटकने लगे । रंग में भंग होते देख चारों और अशांति फैल गई। एक शीकोतर ने कहा-सेट ! यह किसी व्यन्तरी-देवी का उपद्रव है, देवी बिना भख के नहीं छोड़ेगी । तुम्हें किसी बत्तीस लक्षण पुरुष का बलिदान देना पड़ेगा ।