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________________ ए मारो , एहना, ए महु मम आधीन । कर्ता हर्ता मैं मदा, तब तक कर्माधीन । हिन्दी अनुवाद सहित **** * * २२ ९५ सूर्योदय होते ही सेठ को बड़ी चिन्ता हुई, अब कैसे क्या करना ? व्यापार बच्चों का खेल नहीं। यह एक शत्रंज की चाल है. जहाँ " नजर चुके, माल पराया। धवल सेठ ने सुबह से शाम तक कई लोगों से विचार-विमर्श किया। वान की बात में यह समाचार जनता के कानों तक पहुँच गया । फिर क्या कहना ? श्रीमन्तों को मार्गदर्शन का खर्च नहीं लगता है। कई वेकार वाचाल भाग्यहीन लोग अपनी महत्वपूर्ण अनोखी सूझ पान-सुपारी के बदले औरों समर्पित कर चल देते थे तो कई बेकार की सिरपच्ची कर रस्ता नापते । सेठ पर यूटे घटाये थे । ना सिद्धान्त या कि " मुनना सब की और करना मन की"। मनुष्य उधार लेनदेन, भाड़े के बाहन, दूकान और मकान में भाग्य से ही पनपता है। महापुरुषों का अभिप्राय है कि सदा कजे और भाड़े के कीटाणु से बच कर रहो। फले फूले रहना है तो प्रत्येक काम सचाई और रोकड़ दाद से करो। धवल सेट ने भाड़े के जहाज न लेकर अच्छे कुशल कलाकारों से अपने स्वतंत्र पान सौं नवीन जहाज बनवाये, उसमें जुग जलयान बहुमूल्य और कलापूर्ण थे। एक साठ कूप स्तंभ का, व दूसरे अड़सठ जहाज सोलह कूप स्तंभ के थे | शेष सफरी, बेगड़, द्रोण-मुख, शिल्प, खूप आवर्त आदि जहाज भी एक से एक बढ़ कर थे। धवल सेठ न भरूच राज्य से अनुमति प्राप्त कर अपने जहाजों को बंदरगाह पर लगाये । पश्चात् उनमें गुड़-शकर, श्रीफल, वस्त्र किराणादि माल भरा कर अन्य व्यापारियों को भी भाड़े से अपने साथ चलने को आमंत्रित किया गया । जहाज चालक हवा पानी, चट्टाने कीचड़ जल की गहराई, और दिशा आदि देखने में बड़ निपुण थे। अपने कार्य में वे सतर्क हो चलने के लिये आदेश की प्रतीक्षा कर रहे थे। सातभूई वाहणतणी, निविड़ नालिनी पाति । वयरी ना वाहण तणी, करे खोखरी खाति ॥११॥ सुभट सनूग सहस दश, बड़ा बड़ा जूंझार । ... बेठा चिहुँ दिशि मोरचे, हाथ विविध हथियार ॥१२॥ इंधण जल संबल ग्रही, बहु व्यापारी लोक | सोहे बेठा गोखड़े, नूर दिये धन रोक ॥१३॥
SR No.090471
Book TitleShripalras aur Hindi Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherRajendra Jain Bhuvan Palitana
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size12 MB
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