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है इसी तरह अन्य ग्रन्थ भी क्रमशः प्रकाशित होकर पाठकवर्ग के हाथों में यथासमय पहुंचते रहेंगे। पाठकवर्ग मी उन्हें अपनाकर * सद्गत आचार्यदेव के महान परिश्रम का तथा समिति के मुनिवरों का प्रयत्न सफल करेंगे। यदि प्रेसदोष या दृष्टिप्रमाददोष
के कारण त्रुटियें रहगई हो तो सज्जन पाठका सुधारकर पढ़े । विशेषु किमधिकम् ।।
यतः गच्छता स्खलनं कापि, भवत्येव प्रमादतः । इसन्ति दुर्जनास्ता, समादधति सज्जनाः ।। १॥
निवेविका-श्रीभूपेन्द्र सूरि-जैनसाहित्य संचालक समिति
मु. पो. आहोर ( मारवाड़)
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