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________________ श्रिीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद सूक्ष्म-स्थूल-नेत्र को छोड़कर शेष इन्द्रियों के विषय भृत पुद्गल स्कंध को सूक्ष्मस्थूल कहते हैं यथा-गंध रस, शब्द आदि । बादर सूक्ष्मः—जिसका छेदन-भेदन अन्यत्र प्रापण कुछ भी न हो सके उस नेत्र से देखने योग्य स्कंध को बादर सूक्ष्म कहते हैं । यथा-छाया धूप (प्रातप) चाँदनी आदि । सूक्ष्मः—जिसका किसी भी इन्द्रिय के द्वारा ग्रहण न हो सके उसको सूक्ष्म कहते हैं यथा कर्म। सूक्ष्म-सुक्ष्मः-जो स्कन्ध रूप नहीं हैं ऐसे अविभागी पुद्गल परमाणों को सूक्ष्मसूक्ष्म कहते हैं । ।।१४१ १४२।। धर्मद्रव्यं तयोन नं गति कारण लक्षणम् । हठान्न प्रेरकं लोके मत्स्यानां च जलं यथा ॥१४३॥ अन्वयार्ग-(तयो:) उन जीव और पुद्गल द्रव्य के (गाति कारण लक्षणम्) गमन करने में कारणरूप लक्षण वाला है (नून) निश्चय से वह (धर्मद्रव्यं) धर्मद्रव्य है (यथा) जिस प्रकार (लोके) संसार में (मत्स्यानां) मछलियों के चलने में (जल) जल (कारणं) सहकारी कारण होता है, किन्तु (छात्) बलात्कार-जबरदस्ती से (प्रेरक) प्रेरणा देने कामा (न) नहीं होता है। सामान्यार्थ—जिस प्रकार जल मछलियों को चलने में सहायक होता है, उसी प्रकार जो जीव और पुद्गलों को गमन में निमित्त कारण होता है उसे धर्मद्रव्य कहते हैं । किन्तु यह प्रेरणा देकर उन्हें नहीं चलाता। भावार्थ --जल मछली आदि को "चलो" इस प्रकार नहीं प्रेरणा देता है परन्तु जब वे चलती हैं तो उदासीन रूप से उनकी सहायता कर देता है। इसी प्रकार धर्मद्रव्य वह द्रव्य है जो जीव पुदगलों को पकड़ कर नहीं चलाता न चलने को बाध्य करता है, परन्तु स्वभाव से जब वे चलते हैं तो उनकी गमन क्रिया में सहायता देता है। यह उदासीन रूप से सर्वव्यापी है अर्थात् लोक में सर्वत्र पाया जाता है । ।।१४३।। अधर्मस्तु स्थितेर्हेतु व पुदगलयोर्मतः । तरच्छायेव पान्थानां न तयोः स्थायिकः हात् ॥१४४।। अन्वयार्थ (जीव पुदगलयोः) जीव और पुद्गल के (स्थिते) ठहरने में (हेतुः) कारण होने वाला-सहाय देने वाला (अधर्मः) अधर्मद्रव्य (तु) निश्चय से (मतः) माना गया है (पान्थानां) पथिकों को (तरुच्छाया इव) वृक्ष की छाया के समान (तयोः) उन जीव पुद्गल को (हठात्) बलात् जबरदस्ती (म) नहीं (स्थायिका:) रोकता-ठहराता।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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