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श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद]
पृथ्वी जलं तथा छाया चतुः ख विषयस्तथा ।
कर्माण : परमाणु श्च षड्भेदापुद्गले स्थिताः ॥१४०॥
अन्वयार्थ - (पृथ्वी जल तथा छाया) पृथ्वी, जल और दाया (चतु: ख) चौथा चक्षु के अतिरिक्त अन्य इन्द्रियों के विषय (कर्माण : परमाण पत्र) कर्माण और परमाणु ये (षड्भेदा) छ: भेद (पुद्गले स्थिताः) पुद्गल में स्थित है अर्थात पुद्गल में पाये जाते हैं ।
मावार्थ- पुद्गल के छ भेद हैं--(१) पृथ्वी-वह बादर बादर है। (२) जल-यह बादर है (३) छाया-यह बादर सूक्ष्म है (४) चक्षु को छोड़ कर शेष चार इन्द्रियों के विषय ये सूक्ष्म बादर हैं (५) कर्म परमाण -यह सूक्ष्म है (६) परमाण यह सूक्ष्म सूक्ष्म है। इसी का विशेष स्पष्टीकरगा आगे के श्लोकों में है--
गाथाढयमुक्त अइथूल थूलथूलं थूलसुहमं च मुहमथूलं च । सहुमं अइ सुहुमं इदि धरादियं होदि छन्भेयं ॥१४१॥ पुढवी जलं च छाया चतुरिदिय विसय कम्मपरमाण ।
छन्विहभेयं भणियं पुग्गलदव्वं जिणघरेहिं ॥१४२॥ .. . .... :: . अन्वयार्थ-- (अइथूल थूल) वादर-बादर (थूल) बादर (थूलमुहुमं) बादर सूक्ष्म (सुहम-थूलं) सूक्ष्म बादर. (सुहम) सूक्ष्म (अइमुहुम) सक्ष्म-सूक्ष्म (इदि) इस प्रकार ये (धरादियं ) पृथ्वी आदि (छठमेयं) छ भेद (होदि) पुदगल के होते हैं ।
उन्हीं के नाम.....
(पुढवी) पृथ्वी (जलं) जल-पानी (च) और (छाया) छाया (चरिदियविसय) नेत्र को छोड़कर चार इन्द्रियों के विषय (कम्म) कर्म (च) और (परमाए) परमाण (छविह भेयं) छह प्रकार के भेद (पुग्गलदब्ब) पुद्गलद्रव्य के (जिगावरेहि) जिनेन्द्र भगवान् द्वारा (भरिणयं) कहे गये हैं।
सामान्यार्थ - पुद्गल के छ भेद हैं- १. बादर-बादर २. बादर ३. बादर सूक्ष्म ४. सूक्ष्म बादर ५. सूक्ष्म और ६. सूक्ष्म सूक्ष्म । इनके क्रमश: उदाहरण है- १. पृथ्वी २. जल ३. छाया ४. नेत्र को छोड़कर शेष ४ इन्द्रियों के विषय ५ कर्मवर्गणाएं और छ परामरण ।
___ बादर बादरः-जिसका छेदन भेदन अन्यत्र प्राप्ति हो उस स्कन्ध को बादर बादर कहते हैं । यथा-पृथ्वी, काष्ठ, पाषाणादि ।
बादर—जिसका छेदन न हो सके किन्तु अन्यत्र प्राप्ति हो सके उस स्कन्ध को बादर कहते हैं जैसे जल, घी,।