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________________ श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद । दीपों से पूजा करने वाला मनुष्य सभावों के योग से उत्पन्न हुए केवल ज्ञान रूपी प्रदीप के तेज से समस्त जीव द्रव्यादितत्त्वों के रहस्य को प्रकाशित करने वाला अर्थात केवल ज्ञानी होता है । इसी प्रकार धूप और फल पूजा का भी विशेष फल है --- "धबेण मिमिरपारधवल क्रिसिधवलिय जयत्तनो पुरिसो। जायइ फले हि संपत्तपरमणिध्वाण सौक्खफलो।" धुप से पूजा करने वाला मनुष्य चन्द्रमा के समान धवलकीति से जगत्त्रय को धवल करने वाला अर्थात् त्रैलोक्य व्यापी यशवाला होता है तथा फलों से पूजा करने वाला मनुष्य परम निर्वाण का सुख रूप फल पाने वाला होता है। ___ अन्यत्र भी ऐसा कथन मिलता है । अतः जल, चन्दन वा अक्षत के समान ही अन्य द्रव्य भी अपना उसी प्रकार विशेष महत्व रखते हैं सभी द्रव्य उत्तमोत्तम होने चाहिये । यथाशक्ति उत्तम द्रव्यों से पूजा करने वाला श्रावक सातिशय पुण्य का उपार्जन करता हुआ मिथ्यात्वादि संसार के बन्धनों का छेदन कर अल्पभवों में ही मोक्ष के अविनाशी सुख को प्राप्त कर लेता है। एवं नार्यो जिनेन्द्रोक्त धर्मकर्मसुतत्पराः । सारगार संभारा निर्ययुर्वा सुराङ्गनाः ॥१०॥ अन्वयार्थ-(एवं) इस प्रकार (जिनेन्द्रोक्त ) जिनेन्द्र प्रभु द्वारा प्रतिपादित (धर्मकर्मसुतत्परा) धर्मकर्म में सुतत्पर रहने वाली अर्थात् क्षमादि यात्म धर्म से अलंकृत और षट्कर्मों में निरत रहने वाली वे (सारगार संभारा) षोडशा भरण रूप सारभूत शृङ्गार के भार से संभृत (सुराङ्गना) देवाङ्गना के समान (नार्यो) नारियां (निर्ययुः) निकलीं । भावार्थ--अष्ट द्रव्य रूप पूजा की सामग्री लेकर नगर की मारियां अपने-अपने घर से बाहर निकलीं । जिन दर्शन के चाव से उनका मन प्रफुल्लित था । जिन धर्म परायण महिलाएँ नाना प्रकार के रत्नजटित प्राभूषणों एवं सुन्दर वस्त्रों से अलंकृत थीं। जिन धर्म में सदा तत्पर रहने वाली, भक्तिभाव से भरी हुई रूपवतो वे नारियाँ ऐसी प्रतीत होती थीं मानों स्वर्ग की देवाङ्गना ही हों अथवा साक्षान् शचि-इन्द्राणी ही अनेक रूप धारग कर आई हों। हार प्रादि आभूषणों से लदी हुई उनका कान्तिमान रूप इन्द्राणी के समान था। इत्येवं सर्वभब्योधस्संयुतो श्रेणिको नृपः । चेलनादि प्रियोपेतः परैः पुत्रादिभिर्युतः ।।१०६॥ योग्ययानं समारूढो विलसच्छत्रचामरः । ध्वनद्वादित्र संदोहर्जयकोलाहलध्वनः ॥१०७॥
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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