SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ टीका की पूज्या गणिनी आर्यिकारत्न श्री १०५ विजयामती माताजी का प्रभावशाली साहित्य लेखन किसी कवि ने कहा है साँची तो गङ्गा यह वीतराग वाणी, अविच्छिन्न धारा निज धर्म की कहानी। जामें प्रति ही विमल अगाध ज्ञान पानी। जहाँ नहीं संशयादि पङ्क की निशानी ॥ अर्थात् पङ्क रहित, स्वच्छ मधुर ज्ञान जल से भरी हुई जिनवाणी रूपी गङ्गा में स्नान करने से प्रज्ञानरूपी मल का प्रक्षालन होता है अत: मुमुक्षुगण उसमें मज्जन करे, अवगाहन करें। ___ बन्धनों ! अगर सरोवर के दोनों तरफ सुन्दर तट हैं तो याबालबद्ध सभी सरलता से उसमें प्रवेश कर स्नान कर सकते हैं, तट के बिना सरोवर में प्रवेश कठिन है, इस तथ्य को दृष्टि में रखकर परमपूज्या आयिकारत्त श्री. १०५ गणिती विजयामती माताजी ने प्राचार्य परम्परा से प्राप्त एवं संस्कृत में निबद्ध प्रथमानुयोग की कथानों को सरल सुबोध पौली में लिख कर वह सुन्दर तट तैयार किया है जिससे हम आबालवृद्ध सभी सरलता से 'ज्ञानगङ्गा' में प्रवेशा कर सकते हैं आप ऐसी अनेक कथाएँ लिख चुकी हैं जैसे...पुनर्मिलन, सच्चा कवच, महीपाल चरित्र, जिनदत्त चरित्र इत्यादि । ये सभी कथायें इस प्रकार की हैं, जिससे पाठकगण पापपङ्ग से निकल कर धर्मपथ पर आरूढ़ हो सकें और तत्त्वज्ञान से स्वपर के प्रज्ञान तिमिर का नाश कर सकें। अभी, अापके सामने यह जो "श्रौसिद्धचक्रपूजातिशयप्राप्त श्रीपाल चरित्र" प्रस्तुत किया जा रहा है वह अनेक ऐसी विशेषतानों युक्त है जिससे १३ पंथ, २० पंथ आदि पंथ सम्बFधी सभी झगड़ों का सहज निवारण हो जाता है। श्रावकधर्म और मुनिधर्म दोनों धर्मों को सुन्दर विवेचना इस ग्रन्थ में है। जिन लोगों के मन में यह भ्रान्ति जम गई है कि "पञ्चामृत अभिषेक नहीं करना चाहिए तथा स्त्रियों का शरीर प्रशुद्ध रहता है अत: स्त्रियों को अभिषेक नहीं करना चाहिए" वे इस ग्रन्थ को अवश्य पढे तथा प्राचीन ागम परम्परा को दूषित करने के लिए व्यर्थ का प्रयास आगे न करें। तमिलनाड़ में प्राप्त, ताड़पत्रों पर उत्कीर्ग प्राचीन ग्रन्थ को आधार बनाकर यह कथा आपके सामने उपस्थित की जारही है, इसके रचयिता भट्राच श्री 108 सकलकीति प्राचार्य हैं पुनः इस ग्रन्थ रचना प्रारम्भ में उन्होंने यह भी लिखा है कि मैं इस ग्रन्थ में जो कुछ लिख रहा हूँ यह प्रमाणिक है क्योंकि आचार्य परम्परा से प्राप्त कथानक को ही मै यहाँ उपस्थित कर रहा हूँ।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy