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________________ श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद] अर्थात् दान करते रहने से (कोमला) मृदु सुकोमल (कल्पबल्ली इव) कल्पलता के समान (वभी) शोभित थी। 'भावार्य-जिस प्रकार भ्रमर, पुष्प को सुगन्ध को पाकर अतिशय प्रानन्द को अनुभव करता है उसी प्रकार चेलना महारानी थी जिनेन्द्र प्रभ के चरण कमलों को पाकर अतिशय आनन्द का अनुभव करती थीं । उत्कृष्ट भक्ति के साथ-साथ बह विशिष्ट क्षयोपशम रूप शक्ति से भी समन्वित थी। सम्पूर्ण तत्वार्थ को आगमानुसार जानने वाली बह चेलना साक्षात् सरस्वती के समान प्रतिभासित होती थी। जिस प्रकार हीरे को सोने के बीच में जड़ दिया जाय तो उसकी शोभा द्विगुणित हो जाती है उसी प्रकार उत्तम रूप और गुणों से सम्पन्न दिव्य आभूषणों से अलंकृत चेलना महारानी विशेष रूप से शोभित हुई । श्राबकोचित गुणों के उल्लेख में दाम और पूजा को पागम में सर्वत्र विशेष महत्व दिया गया है । षट् कर्मों में तत्पर कोमलाङ्ग रानी चेलना भी कल्पवृक्ष के समान याचकों को योग्य इष्ट वस्तु देकर तथा ऋषि मुनि आर्यिकादिकों को नवधा भक्ति पूर्वक दाता के सप्त गुणों का आचरण करती हुई आहार दानादि देकर सुशोभित हुई, प्रख्यात हुई। यहाँ प्रकरण के अनुसार दाता के सात गुणों का परिज्ञान आवश्यक है। पुरुषार्थसिद्धयुपाय में दाता के सात गुण इस प्रकार बताये गये हैं-- ऐहिकफलानपेक्षा क्षान्तिनिष्कपटतानसुयत्वम् अविपादित्वमुदिल्वे निरहङ्कारित्रिमिति हि दातृगुणाः” ॥श्लोक नं० १६६ ।। (१) इस लोक सम्बन्धी फल की अर्थात् पंचेन्द्रिय विषय सुख की इच्छा न करना (२) क्षमा-यान देते समय क्रोध नहीं करना, मान्ति से निर्मल भाव से दान देना । (३) निष्कपटता-बाहर में भक्ति करे और अन्तरङ्ग में परिणाम खराब रखे ऐसा नहीं करना । (४) अनसुयत्व---दूसरे दातार के प्रति ईयां भाव दुर्भाव न रखना अर्थात् अपने घर मुनिराज का आहार न हो और दूसरे के घर हो जाये तो दूसरे के प्रति बुरा भाव न करना । (५) अविषादित्व-विषाद न करना अर्थात् हमारे घर अच्छी वस्तु थी वह हमने उनको यों ही दे दी अथवा हमारे यहाँ अच्छी वस्तु थी वह हम नहीं दे सके, ऐसा खिन्न परिणाम न करें। (६) मुदित्य-दान देकर हर्ष बहुत करे अर्थात् अत्यन्त आनन्दित होवे। (७) निरहङ्कारित्व-अभिमान न करना अर्थात् हम बड़े दातार हैं ऐसा मन में अभिमान न करना।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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