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धीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद
. इस प्रकार ये सात गुण दाता के हैं। रानी चेलना में ये सातों गुण मौजुद थे । तत्वार्थसूत्र में कहा है-~"विधिद्रव्यदातृवात्रविशेषात् तद्विशेषः" विधि विशेष, द्रव्यविशेष और पात्र विशेष से दान में विशेषता आती है।
शंका-विधि विशेष क्या है ? समाधान--प्रतिग्रह (पड़गाहन) आदि करने का जो क्रम है वह विधि है और प्रतिग्रह आदि में प्रादर और अनादर होने से जो भेद होता है वह विधिविशेष है। आदर और विनय के साथ भक्ति पूर्वक दान करना चाहिये । शंका-द्रव्य विशेष क्या है ? समाधान—जिससे तप और स्वाध्याय आदि की वृद्धि होती है वह द्रव्य विशेष है। शंका- दातृ विशेष क्या है ? समाधान--अनसूया और अविषादित्व आदि ७ गुणों का होना दाता की विशेषता है । शंङ्गा--पात्र विशेष क्या है ? समाधान मोक्ष के कारणभूत रत्नत्रय आदि गुणों से युक्त रहना पात्र की विशेषता है। जैसे पृथ्वी आदि में विशेषता होने से उसमें उत्पन्न हुए धान्य में विशेपता आ जाती है वैसे ही विधि आदि की विशेषता से दान से प्राप्त होने वाले गुण्य में विशेषता मा जाती है। चेलना महारानी का दान इन सभी विशेषताओं से युक्त था जिससे उसके द्वारा दिया गया दान लौकिक सम्पत्तियों के साथ-साथ यात्म शुद्धि में भो साधक था।
"क्षत्र चूडामणि" में कहा है---नादाने किन्तु दाने हि सतां तुष्यन्ति मानसं"
सज्जन पुरुष त्यागकर-दान देकर आनन्दित होते हैं लेकर नहीं उसी प्रकार चेलना महारानी भी दान देकर विशेष सुख का अनुभव करती थीं ।।८३ ८४।।
तया चेलनया सार्घ भूपः पञ्चेन्द्रियोचितान् ।
भजन भोगान्मनोमिष्टान् सर्वजीवदयावहान् ।।८५॥
अन्वयार्थ ... - (भूपः) वह श्रेणिक राजा (सर्वजीवदयावहान) सर्व जीव दयापूर्वक (पञ्चेन्द्रियोचितान्) योग्य पञ्चेन्द्रियविषयों को (चेलनवासार्थ) चेलना के साथ (भुञ्जन्) भोगता हुआ एवं
तथा राज्ञीशतोपेतान भूरिपुत्ररलंकृतः ।
नाम्नाभयकुमाराद्यैः पूर्णचन्द्रोयथोडुभिः ।।६।। अन्वयार्थ --(यथाउडुभिः पूर्णचन्द्रो) जैसे नक्षत्रों से घिरा हुआ पूर्ण चन्द्रमा शोभता है (तया) उसी प्रकार (राज्ञीशतोपेतान्) सैकड़ों रानियों से सहित तथा (नाम्नाभयकुमाराद्य :) अभयकुमार आदि नाम वाले (भरिपुत्रः) बहुत पुत्रों से (अलंकृतः) शोभित था ।।८६॥
संतस्थौ पालयन्प्रीत्या स्वप्रजाः पुत्रवत् सदा । चन्द्रकान्तिलसत्कोतिजिन भक्तिपरायणः ॥७॥