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________________ धोपाल चरित्र नवम् परिच्छेद ] [५.६ सा । AMBER ८स.. Dhootsp पौर स्वर्ग-मोक्ष का दायक है । उभय लोग सुखकारी इस व्रत की प्रचित्य महिमा और अपार गुणगरिमा को सुनकर भोपाल के साथी सास सौ सेवक राजारों ने तथा श्री श्रीपाल के सभी पुत्ररत्नों ने, मदनसुन्दरी को प्रमुखकर समस्त अनिद्यसुन्दरी नारियों ने एवं अन्य समस्त पुरबासिनो गुणशील मण्डिता नारियों ने भी अनेकों नागरिकों, सुभटों, वीरों ने इस व्रत को धारण किया । श्रीपाल के चित्र-विचित्र मारों ने विद्याधरीकुमारों ने, उसके साले सुकण्ठ एवं श्रीकष्ठ ने, सशील, गन्धर्व, यशोधन, विवेकशील वज्रसेन नामक राजकमारों ने, हिरण्य स्नेहाल राजपुत्रों ने, कुकुणनाथ के राजा, सुधर्म करने में उत्कण्ठिस मकर केतू जीवन्त नामक विख्यात, सुप्रसिद्ध राजपुत्रों ने, मदनसुन्दरी के पिता राजा प्रजापाल नरेश में और भी अनेकों राजाओं ने जो श्री कोठोभट के प्राधीन थे तथा अनेकों ने सिद्धचक्र व्रत को स्वीकार किया। ___इस प्रकार व्रत की गरिमा से शोभायमान, उत्तम प्रभाव से प्रभावित, सिद्धचक्र की महिमा सुनकर तथा श्रुतसागर मुनिराज द्वारा कथित अपने पूर्वभव की कथा-वृत्तान्त सुनकर, प्रमुदित महामण्डलेश्वर महाराज श्रीपाल कोटिभट, परिजन, पुरजन सहित प्रत लेकर गुरुजनों को पुनः पुन: वन्दन नमस्कार, विनय कर अपने नगर में आये ।।१६ से १६१।। इति श्री सिद्धचक्रजातिशय प्राप्ते श्रीपाल महाराज चरिते भट्टारक श्री सकल कीर्ति विरचिते श्रीपाल महाराज मदनसुन्दरी पुनर्धर्मश्रवणपूर्वकं भवान्तरच्यावर्णननाम नवम परिच्छेदः : : - -
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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