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श्रोपाल चरित्र अष्टम परिच्छेद ]
इस प्रकार शुद्ध सम्यग्दृष्टि जीब उक्त २५ दोषों से रहित होता है ।।७७||
: मद्यमांसमधुत्यागस्सहोदम्बरपञ्चकः । 'अष्टौभूलगुणाः प्रोक्ताः गृहिरणां पूर्वसूरिभिः ॥७॥ : धूतमांससुरावेश्यापापधिपरदारतः ।
स्तेयेन सह सप्तेति व्यसनानि त्यजेद् बुधः ॥७॥
अन्वयार्थ--(पूर्वसुरिभिः) पूर्व प्राचार्यों के द्वारा (गृहिणां) गृहस्थों के (अष्टौ) पाठ (मूल गुणाः) मूलगुण (प्रोक्ता) कहे गये हैं (मद्यमांसमधुत्यागः) मद्य, मांस और मधु का त्याग करना और (सहोदम्बरपञ्चकैः) पाँच उदम्बर फलों का भी त्याग करना (छ त. मांससुरावेश्यापापधिपरदारतः) जूना, माँस, मदिरा, वेण्या सेवन, शिकार और परस्त्रीरमण (स्तेयेन सह सप्तेति) तथा चोरी इन सात व्यसनों का (बुधः त्यजेत) बुद्धिमान पुरुष त्याग करें।
भावार्थ-मद्य, मांस और मधु का त्याग एवं बड़, पीपल, पाकर, ऊमर और कठूमर इन पांच उदम्बर फल का त्याग करके आठ मूल गुणों का धारी श्रावक ही सम्यग्दर्शन गुण को धारण करने की पात्रता-योग्यता रखता है अन्यथा नहीं क्योंकि मद्य, मांस आदि के सेवन से अत्यधिक जीवों की हिंसा होती है, अनयों कपात होना है इससस्य सहीनों का धात होता है । जो मनुष्य इन पाठों का परित्याग नहीं करता है बह जैन ही नहीं कहा जा सकता है । सर्वप्रथम मद्यपान के दोषों को बताते हुए प्राचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं--
मद्य मोहयति मनोमोहितचित्तस्तु विस्मरतिधर्म ।
विस्मृतधर्माजोवो, हिंसामविशंकमाचरति ॥६२।। पुरु०
अर्थात् मदिरापायी पुरुष के धर्म, कर्म, विवेक सभी नष्ट हो जाते हैं, वैसी अवस्था में उसकी हिंसा में नि:शङ्क प्रवृत्ति होती है । मदिरा पोने वाले की हिंसा में ही क्यों प्रवृत्ति होती है ? इसका उत्तर यह है कि मदिरा से प्रात्मा में तमोगुण की बद्धि होती है उसके निमित्त से वह तीव्र कषाय एवं ऋ रता पूर्ण कार्य में प्रवृत्त होने के लिये बाध्य हो जाता है, कुचेष्टायें करता फिरता है, अभक्ष्य भक्षण कर लेना है, सप्त व्यसनों के सेवन में लग जाता है, ये सब तमोगुण के कार्य है।
पुनः मदिरा की उत्पत्ति सड़ाये हुए पदार्थों से होती है। बहुत काल सड़ने से उन पदार्थों में तीव्र मादकता उत्पन्न हो जाती है । जो जितने अधिक दिन सड़ाये जाते हैं, उनसे उतनी ही अच्छी शराब तैयार होती है सड़ने से उनमें असंख्य तो स जीद पैदा हो जाते हैं और अनन्त स्थावर जोव पैदा हो जाते हैं 1 पीछे उन सड़ाये हुए पदार्थों को मथा जाता है, मथने से वे सभी जीव मर जाते हैं। इस प्रकार अनन्त जोवों का बध हो चुकने के बाद फिर जब मदिरा तैयार हो जाती है तो फिर उस दुर्गधित रस में असंख्य अस और अनन्त स्थावर जीब उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार मदिरापान महान् हिंसा और अनर्थों का घर है ।