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( भोपाल चरित्र सप्तम परिच्छेद
अन्वयार्थ - ( राजन् ) हे राजन् ! ( नूनं) निश्चय ही ( अहम् ) मैं ( पितृभूतये ) पिता की सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिये ( स्वदेशं ) अपने देश को ( यास्यामि ) जाऊँगा ( ततो ) तब ( धीमन् नृपो ) बुद्धिमान् राजा प्रजापाल ने (प्रवचन) कहा ( मे अर्ध राज्यं) मेरे आवे राज्य को ( गृहाण ) ग्रहण करो ।
भावार्थ - - श्रीपाल महाराज उक्त प्रकार विचार कर यह निश्चय किया कि मैं शीघ्र ही जाकर, भयंकर युद्ध कर, चाचा को युद्ध में जीतकर अपना राज्य प्राप्त करूंगा। जब तक कुल परम्परा से प्राप्त अपने पिता के राज्य को नहीं लेता हूँ तब तक मुझे शान्ति नहीं हो सकती है। ऐसा मन में राज्य प्राप्ति के लिये ध्रुव विचार कर उसी समय उन्होंने राजा प्रजापाल को इस प्रकार कहा कि मैं अपने पिता की सम्पत्ति को पाने के लिये अपने देश जाऊँगा तत्र बुद्धिमान राजा प्रजापाल ने कहा कि हे महानुभाव ! आप मेरा आधा राज्य ग्रहण करें अर्थात, मैं अपना आधा राज्य आपको देता हूँ आप यहीं सुख पूर्वक निवास करें ||६ से ८ ||
तिष्ठायैव सुखेन त्वं किं साध्यं पितृराज्यतः । तनोचितं स इत्युक्त्वा संचचाल ततो द्रुतम् ॥
अन्वयार्थ - ( त्वं ) तुम (अव) यहीं ( सुधेन तिष्ठ) सुख से ठहरो (पितृराज्यतः ) पिता के राज्य से ( कि साध्यं ) क्या प्रयोजन ? ( ततो ) तब ( तत न उचितं ) वह ठीक नहीं ( इति उक्वा ) ऐसा कहकर ( द्र ुतम ) शीघ्र ( संचचाल ) चल दिया अर्थात् प्रस्थान किया । भावार्थ -- जब राजा प्रजापाल ने श्रीपाल महाराज को यह कहा कि तुम यहीं सुख से ठहरो और इस राज्य का भांग करो तब श्रीपाल महाराज ने कहा कि यह ठीक नहीं है अर्थात् शूरवीरों के लिये यह शोभनीय नहीं है। इस प्रकार कह कर शीघ्र ही वहाँ से चल दिया अर्थात् अपने राज्य की तरफ प्रस्थान कर दिया |१६||
सारशृंगारभार्याभिस्सर्वाभिः परिमण्डितः । जंगमः कल्पवृक्षो वा लताभिः परिवेष्टितः ॥ १०॥ गजाश्व रथपादाति सहस्रः परिवारितः । छत्रचामर सद्भृत्या चक्रवर्तीय धोधनः ॥। ११॥ अश्वपादाहत क्षोणिरजोभिस्छावयन् नभः । पतापनिजिता राति मंडलो वा दिवाकरः ॥ १२॥
अन्वयार्थ - ( सारशृंगार ) सारभूत सुन्दर वस्त्राभरण से अलङ्कृत ( सर्वाभिः भाभिः) सुन्दर स्त्रियों से (परिमण्डितः ) सुसज्जित अर्थात् चारो तरफ से वेष्ठित हुए उस समय महाराज श्रीपाल ऐसे शोभित होते थे मानो ( लताभिः परिवेष्टितः ) लताओं से घिरा हुआ (जंगमः कल्पवृक्षोवा) पृथ्वीकायिक कल्पवृक्ष ही हो । ( गजाश्वरथपादातिसहस्र :) हाथी, घोड़े, रथ और पति रूप सैकड़ों सैन्यदल में तथा (छत्रचामरसद्भृत्या) छत्र, चमर और