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________________ ३६८ [धीपाल चरित्र षष्टम परिच्छेद तथा श्री सिद्धचकं च समाराध्य सुखप्रदम् । शास्त्रं गुरुपदाम्भोजद्वयं चापि शुभावहम् ।।१०।। स्तुत्वानत्वा महास्तोत्रर्जप्त्वा जाप्य जिनेश्वरम् । महावानादिकंवत्वा समूतीर्य गिरेस्ततः ॥११॥ सज्जनस्संयुतो धीमान पात्रदानादिपूर्वकम् । पारणाञ्च विधायोच्चस्ततस्सयं गुणाकरः ।।२।। सौराष्ट्रदेश भूमीशकन्याः पञ्चशतानि च। परिणीय महाभूत्या परमानन्द निर्भरः ।।१३।। अहिछत्राधिपं तत्र शक्त्यारिदमनाह्वयम् । महान्तंगर्वलक्ष्म्याढ्यं स साधाऽयौ स साधनः ।।१४।। प्रन्वयार्थ --(भव्यानाम् ) भव्य प्राणियों को (व्यक्तम् ) साक्षात् (सौख्यकारणम् । सुख का कारण (मुक्तिक्षेत्रम्) मोक्षपुरी (इव) समान (सार) सारभूत (वनस्पति) वनस्पति को धारण करने बाला (निर्भराय:) झरने आदि से (समुज्वलम्) शुभ्र (लसद्) शोभायमान्, (मुनीनाम्) मुनिराजों के (मानसम्) मन के (इव) समान (सर्व) सम्पूर्ण (पापहरम् ) पापों को हरने वाला (सारम्) सारभूत (तम्) उस गिरिराज को (विलोक्य ) देखकर (सुधी:) वह ज्ञानी श्रीपाल (निधानम् वा) मानौ निधि हो (मुदा) आनन्दित (ययौ) हुआ (तत्र) वहाँ (तम् ) उस ऊर्जयन्तगिरि पर (समारुह्य) चहकर (सुरासुरसमचितम्) सुर और असुरों से पूजित (मिजिनम् ) नेमिनाथ जिनेश्वर को (दृष्ट्वा ) देख कर (सकान्ताः ) अपनी रमणियों सहित (सपरिच्छदः) समस्त परिकर युक्त (तत्र) वहीं (पूतात्मा सुधीः) पवित्रात्मा बह विवेकी नृपति (फाल्गुनमासे) फागुन मास में पाये (आष्टातिकोत्सवे) आष्टाह्निकपर्बोत्सव में (अप्टौदिनानि) आठ दिन तक (शतानिमहोत्सव) सैकडौं महोत्सव (कृत्वा) करके (च) और (विधिपूर्वक) विधिवत् (पञ्चामृतप्रवाहै) पञ्चामृतों के प्रवाह से (श्रीमज्जिनाधीशस्य) श्रीमज्जिनेश्वर प्रभु का (उत्तमम् ) सर्वोत्कृष्ट (महास्नपनम) महाभिषेक (विधा करके तथा(क' रवासित:) कर्पूर से सुगन्धित (स्वच्छतोयैः)निर्मल जल से (सच्चन्दनाक्षतैः) चन्दन, अक्षतों से (सुगन्धकुसुमैः) रुगन्धित पुष्पों से (दिव्यः) दिव्य (नैवेद्यः) चरुनों से जो (दुःखनाशन:) दुखों की नाशक है, (रत्नकर्पू रसद्दीपः) रत्न, कर्पूर से निर्मित उत्तम दीपकों से, (कालागरुसमुद्भवः) कालागरुचन्दनादि से निर्मित धूप से (मुक्तिफलप्रदेः) मुक्तिरूपी फल को देने वालो (नालिकेराम्रजम्बीरफल:) श्रीफल, प्राम, विजारादिफलों से (प्रियान्वितः) रानियों के साथ (सोपचारः) पञ्चोपचारी (जगताम् पूज्यम) विश्वपूज्य (श्रीमन्नोमिजिनेश्वरस्य) श्रीमान् नेमिनाथ भगवान के (पादद्वयम्) युगल चरणों को (मुदा) अानन्द से (सम्पूज्य) पूजकर (तथा) तथा (सुखप्रदम् ) सुख देने बाले (श्री सिद्धचक्रम् ) श्री सिद्धचक्र की (समाराध्य) सम्यक् आराधना कर (च) और (शुभावहम् ) सुख-शान्ति प्रदाता (शास्त्रम् )
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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