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________________ श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद ] [ २३ तीनों के समानुपात सेवन से अन्ततः वैराग्य को प्राप्त हुए ने भव्य जीव निश्चय से मोक्ष को प्राप्त करते हैं ।। ५८ ।। यत्र पुत्रोत्सनित्यं जिनपूजा महोत्सवैः । बिवाहमङ्गलंश्चापि पुरं था तन्मयं बभौ ॥५६॥ अन्वयार्थ - ( यत्र ) जहाँ अर्थात् उस राजगृह नगरी में ( नित्यं ) निरन्तर होने वाले ( पुत्रोत्सव : ) पुत्र जन्मोत्सवों से (जिनपूजा महोत्सव ) जिनपूजा महोत्सवों से ( चापि ) और भी ( विवाहमङ्गलः ) विवाहोत्सवों से ( पुरं ) वह नगरी ( तन्मयं बभौ ) उत्सव रूप हो हो गयी थी । भावार्थ उस नगर में पुत्र जन्मोत्सव के समय धर्मात्मा भव्य जन उस निमित्त से fearfभषेक, पूजा विधानादि भी कराते थे। जिनालयों में नाना प्रकार के चन्द्रोप, छत्र, चमर, घंटा, माला आदि उपकरण चढ़ाकर धर्म प्रभावना करते थे । ध्वजा तोरणादि से जिन भवनों को सुसज्जित करते थे । इसी प्रकार विवाह आदि माङ्गलिक कार्यों में भी जिनाभिषेक पुजादि करते कराते थे। पर्यकाल में व्रत, उपवास के उद्यापनादि के उपलक्ष में अनेकों उत्पाद तथा स्वयं भी करते थे । इस प्रकार वहाँ प्रतिदिन कोई न कोई उत्सव होते ही रहते थे जिससे वह नगरी हो मङ्गालमयी प्रतीत होती थी ।। ५६ ।। एवं शोभाशतं युक्ते तस्मिन् राजगृहे पुरे । राजाऽभूच्छ्रे रिसको नाम सम्यग्दृष्टि शिरोमणिः ॥ ६० ॥ श्रन्वयार्थ - ( एवं ) इस प्रकार ( तस्मिन् ) उस ( राजगृहे पुरे ) राजगृह नगर में ( सम्यग्दृष्टि शिरोमणिः ) सम्यग्दृष्टियों में अग्रगण्य ( श्रेणिको नाम) श्रेणिक नामक ( राजाऽभूत् ) राजा हुआ | भावार्थ उस राजगृह नगर में क्षायिक सम्यग्दष्टि श्रेणिक नामक राजा था। वह जिनधर्म सेवी और तत्त्वों पर अटल विश्वास करने वाला था अर्थात् सम्यक् दृष्टियों में तिलक स्वरूप था ।। ६० ।। प्रतापनिजिताराति मण्डलो महिमास्पदः । भास्करी वा द्वितीयोऽयं कुमार्गतिमिरापहः ॥ ६१ ॥ अन्वयार्थ ( स ) वह राजा ( प्रतापनिजिता रातिमण्डलो ) जो अपने प्रभुत्वप्रताप से समूह को जीत चुका था ( महिमास्पदः ) महिमा का स्थान ही हो गया था (वा) अथवा मानो (अयं ) यह नृपति ( कुमार्गतिमिरापहः) खोटे मार्गरूपी अंधकार को नष्ट करने वाला ( द्वितीयो ) दूसरा ( भास्करो ) सूर्य ही था ।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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