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________________ ३५० ] श्रीपः । सारिन 'पष्ट श्रीपालोऽसौ ततः प्राह वक्षास्सन्ति नृपा न किम् । यतस्त्वत्पतिरेवाऽत्र कन्यास्सर्वा ददाति मे ।।१६।। अन्वयार्थ-(ततः) दूत वचन मुन (असौ) वह (श्रीपालः) धोपाल (प्राह) चोला (किम् ) वया (त्वत्) तुम्हारा (पतिः) स्वामी (नपा) राजा (दक्षा) चतुर (न) नहीं है (यतः) क्योंकि (सर्वाः) सभी (एव) हो (कन्या:) पुत्रियों को (मे) मुझे (ददाति) दे रहा है। भावार्थ-श्रीपाल विनोद से दूत को कहता है कि तुम्हारा स्वामी एवं राज के लोग क्या मूर्ख है। उन्हें बुद्धि नहीं ? मुझ अपरिचित को अपनी इतनी पुत्रियों को देना चाहता है। यह विचार करना चाहिए ।।१६।। तत्प्रश्नादाह दूतोऽपि नैमित्तिकेन भाषितम् । भर्तायश्चित्रलेखायास्तासां पुण्यात्स एव हि ॥२०॥ इति नैमित्तिकेनोक्तं श्रुत्वामत्स्वामिनाद्भुतम् । प्राज्ञापितोऽस्म्यहं स्वामिस्तस्मादागम्यतां द्रुतम् ॥२१॥ अन्वयार्थ (तत्प्रश्नात्) श्रीपाल द्वारा प्रश्न करने पर (दूत:) वचोवह (अपि) भो (आह्) बोला, (नैमित्तिकेन) निमित्तज्ञानी ने (भाषितम्) कहा था कि (यः) जो (चित्रलेखायाः) चित्रलेखा का (भा) पति हो (पुण्यात्) पुण्य प्रभाव में (हि) निश्चय पूर्वक (स.) वह (एव) ही (तासाम् ) उनका है (इति) इस प्रकार (नैमित्तिकेन) निमित्तज्ञानी द्वारा ( उक्तम् ) कथित को (त्या) सुन कर (मत्) मेरे (स्वामिना) स्वामी ने (दूतम्) शीघ्र ही (अहं) मुझ (अज्ञापिनोऽमि) आज्ञा दी है (स्वामिन्) हे स्वामिन् (तस्मात्) इसलिए पाप (द्र तम) अविलम्ब (पागम्यताम् ) आइये । भावार्थ--दूत के निमन्त्रण को पाकर श्रीपाल कोटिभट ने पूछा कि तुम्हारा राजा अपनी इतनी कन्याओं को मुझे हो क्यों देना चाहते हैं ! इसके उत्तर में वह पत्रवाही बोला, स्वामिन् सुनिये, इसका कारण मैं बताता हूँ । एक दिन राजा ने अपनी नव यौवना सुन्दरी पुत्रियों को देखकर उनके विवाद का विचार किया । इसके लिए भूपति ने नैमित्तिज को बुलाया और कन्याओं के भावी पति के विषय में पूछा। उसने कहा कि जो पुण्यात्मा महापुरुष चित्रलेखा का पति होगा, वही कलाविद् आपकी कन्याओं का भी वर होगा । यह ज्ञात कर हमारे स्वामी ने मुझे आपको लाने की आज्ञा देकर भेजा है। अत: अब आप अविलम्ब मेरे साब पधारिये और उन कन्याओं के स्वामी बनिये ॥२०, २१।। दूत वाक्यं समाकई श्रीपालोऽपि प्रसन्नधीः । गत्वा तत्र महाभूत्या पतिस्तासां बभूव सः ।।२२।।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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