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________________ श्रोपाल चरित्र षष्टम परिच्छेद] [ ३४६ अपार हर्ष हुआ । यौवन प्राप्त कन्याओं की यही गति है । कौन माता-पिता अपनी पुत्रियों को सौभाग्य सुन्दरी रमणी रूप में देखना नहीं चाहते ! राजा ने आनन्द से वर दक्षिणा रूप में श्रीपाल को अनेकों विशाल गज, सुन्दर चञ्चल अश्व, रथ, पादाति नाना प्रकार रत्नादि, वस्त्रालङ्कार प्रदान किये । महल मकान दिये । इस प्रकार श्रीपाल राजा भी धन सम्पदा के साथ १०० रमणियों के साथ सुखोपभोग में तन्मय हो गये 1 जिस समय उनका हास-विलास पूर्वक जीवन चलने लगा कि उसी समय कोई दूत हर्ष भरा आया और श्रीपाल जी को नमन कर इस प्रकार के वचन कहने लगा ।।१३, १४, १५।। क्या कहा सो सुनिये ... काञ्चनाख्यं पुरे राजा वज्रसेनोऽस्य बल्ल पा अभूत्काञ्चनमालाख्या तयोस्सुशील संज्ञकः ॥१६॥ गन्धयोख्यो यशाधौती, विवेकशील मामकः । कन्या विलासमत्याद्याख्यास्युर्नवशत प्रभाः ॥१७॥ अन्वयार्थ—(काञ्चनाख्यपुरे) काञ्चन नामक पुर में (वज्रसेनः) बज्रसेन (राजा) नृपति (अस्य) इसको (काञ्चनमालाख्या) काञ्चनमाला नामक (बल्लभा) भार्या-रानी (अभूत्) थी (नयोः) उन दोनों के (सुशीलसंज्ञकः) सुशील नामक, (गन्धर्वाख्यः) गन्धर्वनाम वाला एवं (यशोधौतः) कीर्ति जल से स्वच्छ (विवेकशीलनामक:) विबेक शील नाम वाला पुत्र (विलासमत्याद्याख्या) विलासमती आदि नामवाली (नवशतप्रभा:) नी सो प्रमाण (९००) (कन्याः ) पुत्रियाँ (स्युः) हुयी । भावार्थ -- कर्मठ दूत कहता है कि महाराज काञ्चनपुर नामक नगर है उसमें वज्रमेन नामक राजा है। उसकी प्राण प्रिया काञ्चनमाला है। उन दोनों के सुशील, गन्धर्व एवं अपने यश से पवित्र विवेकशील नामक पुत्र तथा विलासमती आदि नामवाली नवसौ कन्याएं हैं ।। १६, १७।। सर्वास्ता रूपलावण्यखन्यो देव स्व पुण्यतः । शीन परिणय त्वञ्च तत्रागत्य नपात्मजः ॥१८॥ अन्वया--(ताः) वे (सर्वाः) सनी (रूपलावण्यखन्याः) रूप सौन्दर्य की खान हैं (देव ! ) हे देव (नृपात्मजः) हे नृपकुमार ! (स्व पुण्यतः) अपने पुण्य से (तत्र) वहाँ (आगत्य) आकर (त्वम्) प्राप (शीघ्नम् ) शीघ्र (परिणय) विवाह करें। मावार्थ -हे देव, भो राजकुमार ! वे सभी कुमारियाँ रूप गुण का खान हैं आप अपने पुण्य प्रताप से शीघ्र ही वहाँ पधारिये और उन सौभाग्य शालिनियों को वरण कर उनके नाथ होइये ॥१८॥
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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