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[श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद प्रकृत श्लोक में भी इसी अभिप्राय की पुष्टी है अर्थात् सांसारिक सुख सामग्री भी धर्म से या पुण्य से प्राप्त होती है ।।४६।।
यत्पुर्याश्च चतुर्दिक्षु बनादौ श्री जिनालयाः । रत्नादिप्रतिमोपेताः सुरेन्द्राधेस्सचिताः ॥५०॥ सवंदा भव्य सन्दोहः महास्तोत्रशतैश्शुभैः।
गीत त्यैश्च बाविर्भान्तिस्मोच्चैर्जगद्धिताः ॥५१॥ अन्वयार्थ (यत्पुर्याः च) और उस राजगृह नगरी के (चतुदिक्षु) चारों ओर (चनादौ) वन-उद्यानादि में (सुरेन्द्राय :) देवेन्द्रों द्वारा (समचिताः) सम्यक् प्रकार पूजित (रत्नादिप्रतिमोपेताः) रत्नादि की उत्तम प्रतिमाओं से युक्त (श्रो जिनालयाः) रलतोरणादि विभूतियों से सम्पन्न जिनालय हैं । (जगद्धिताःच) जगत का हित करने वाले वे जिनालय (सर्वदा) निरन्तर (भव्यसन्दोहै:) भव्य जनों से (महास्तोत्र शतश्शुभैः) श्रेष्ठ मनोज्ञ भक्तिरस से भरे महास्तोत्रों से (गीतः नृत्यः च) गीत और नृत्यों से (भान्तिस्म) शोभित थे ।
भावार्थ-वह राजगह नगरी साक्षात् जिनधर्म की मूर्ति स्वरूप भाषती है । उसके चारों ओर रमणीय वन और उद्यान हैं। उनमें सर्वत्र विशाल-विशाल घंटा तोरण और ध्वजारों से अलंकृत जिनालय हैं। उनमें अति मनोज्ञ, पापहारी, सौम्य जिनबिम्ब विराजमान हैं। यहां जिन पूजन के लिये आये हुए देव इन्द्र सुरेन्द्र, नागेन्द्र तथा नर-नारी नृत्य, गान स्तुति स्तोत्रों से सातिशय पुण्य का संचय करते हैं । जिन भक्ति अनन्त अशुभ कर्मों का संहार करने वाली और प्रभूत पुण्य की कारण है । पापनाशन और पुण्यवर्धन के साथ परिणाम शुद्धि और प्रात्मशुद्धि की भी कारण है तथा परम्परा से मोक्ष की साधक है । तभी सुरेन्द्र भी अपने स्वर्गीय वैभव भोग विलास का त्याग कर जिनेश्वर की पूजा भक्ति में लीन हो जाते हैं तथा अकृत्रिम चैत्यालयों में पर्व के दिनों में पूजा स्तुति कर पुण्यार्जन करते हैं ।।५०।।५१।। ग्रन जिनप्रतिमाओं के दर्शन का माहात्म्य बताते हुए कहते हैं
येषां दर्शनमात्रेण भव्यानां पश्यतान्तराम् ।
पापं प्रयाति तत्कालं भास्करेण यथा तमः ॥५२॥
पन्वयार्थ - (येषां) जिन प्रतिमाओं के (दर्शनमात्रेण) दर्शनमात्र मे (भव्यानां पापं) भव्य जीवों का पाप (पश्यतान्तराम्) तत्क्षरग (यथा भास्करेण तम:) सूर्य के द्वारा नष्ट किये गये अन्धकार के समान (तत्कालं) तत्क्षण (प्रयाति) नष्ट हो जाता है ।
भावार्थ- महा भयंकर सघन अन्धकार भी सूर्योदय के होते ही विनोन हो जाता है उसी प्रकार जिनबिम्ब का दर्शन करते ही भव्यजनों का पापकर्म रूपी अंधकार तत्काल