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श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद] सेठ को (क्षेत्रपाल:) क्षेत्रपाल ने (अपि) भी (लातेन) लातों से (जघान) मारा (परः) दूसरे (सुर:) देव ने (पृष्ठमाखिम्) पीछे हाथ (मुखम्) मुख (अघः) नीचे (उच्चैः) जोर से (बबन्धः) उसे वांच दिया, (ज्वालादिमालिनी) ज्वालामालिनी (देवी) देवी (पोतान्) जहाजों को (प्रज्वालयामास) जला दिया (सत्यम्) ठीक ही है (साधूनाम् ) साधुओं की (पीडा) कष्ट-विपदा (पारणापहारिणी) प्राणों की नाशक है (लथा) उस प्रकार मार-पीट बांध कर (ते) वे देवी देवता (कोपेन) कोध से (तस्य) उसके (मुखे) मुख पर (अशुचिम्) मलमूत्रादि (निप्त्वा) क्षेपण कर (जगुः) बोले (पापिन्) हे पापी (त्वकम् ) तुम (बद) वोलो (पुनः) फिर (इस्थम । इस प्रकार का (पापकर्म) पाप कार्य (करोषि) करोगे ? (एवम् । इस प्रकार (तै:) उनके द्वारा (गाढम्) अत्यन्त (पीडितः) पीडित हुआ (स:) वह (पापी) पापात्मा (भवकम्पितः) भय से कापता (तस्याः) पतिव्रता उस सती के (पादयोः) चरणों में (पतित्वा) गिरकर (सती) हे सती (ध्र वभ) निश्चय ही (त्वम्) प्राप (मे) मेरी (पूज्या) पूजनीय हो (देवि:) हे देवते ! (मया) मुझ (पापिना) पापी से (कृतम ) किया गया (सर्वम्) सब कुछ कुकर्म (मे) मेरा (क्षमस्व ) क्षामा करो (एक) इस प्रकार स: बहस (ताम् । उस शीलवती को (साधुः) सम्यक् प्रकार (संस्तुत्य) स्तुति करके (शीघ्रम्) शीघ्र ही (सुप्रसन्ना) भलोभांति प्रसन्न (चकार) किया ।।१४ से १०५ ।। (च) और भी प्राचार्य कहते हैं-(पूर्व) पहले (पीडिते) दु:खी (सति) होने पर (दुधिया) खोटी बुद्धि (सतां मतिः) सद्बुद्धि (जायते) होती है वह (सत्यम्) यथार्थ है (यथा) जिस प्रकार (अन्धः) अन्धा पुरुष (ललाटे) ललाट पर (ताडनम) मारे (बिना) बिना (न) नहीं (जानाति) जानता है। भावार्थ-अत्यन्त कुपित सिंहनी सदृश निर्भय सती उस अत्याचारी की भत्स्ना करते
हुए धर्मनीति, आगमोक्त बाणी का स्मरण दिलाती है कि "हे दुर्बुद्धि तुम निश्चय ही घोर नरक में जाने की इच्छा से इस प्रकार बकवाद कर रहे हो । परनारी लम्पटी नरक का पात्र होता है । कोचक, रावण आदि जो जो परनारी सेवन की अभिलाषा किए बे सब नरकगामी हुए यह आर्ष वचन है । तुम्हें भी यहीं जाना हागा। हे दुधिया अपना काला मुह लेकर यहाँ से चलते बनो । जाओ, निकलो कहीं भी अपने कलको मुख को छपा लो। इस अकृत्य-पापकर्म को छोड । त क्या ? कितने हो तेरे जेसे कीट आ जाये । मेरा सुमेरु मन चलायमान नहीं हो सकता। प्रलयकालीन वायु भी सुमेरु पर्वत को चलायमान कर सकती हैं ? नहीं । कदाऽपि नहीं । अपितु वही टकराकर चली जाती है । अरे पापी ! चया