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________________ [श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद । शीलं रक्षरित लोकेऽत्र निर्मलं प्रारणवत्सदा । ये नरायोषिताश्चाऽपि तें पूज्यन्ते सुरादिभिः ।।५।। दूतिका लूतिकायूयं पापिन्यः शृण तादरात् । अयं पितृसमः श्रेष्ठी नष्टधीः किं प्रजल्पति ॥८६॥ शीलच्छेदेन लोकेऽत्र नासिकाच्छेदनं ध्र वम् । मस्तकंच्छेदनं चाऽपि प्राप्नुवन्ति दुराशयाः ।।८७॥ ततो घोरे महाश्वभ्र छेदनं भेदनं धनम् । ताडनं तापनं दुःख सहन्ते पाप कर्मणा ॥८॥ स खलो धवलो मूढो विकलो मदनातुरः । मद्यपानीव निर्लज्जो वक्तीदं पापदं वचः ।।८।। पापिन्यो योषितायूयं नोचालोके स्वभावतः । युष्माकं न कथं लज्जा कुक्कुरोणामिव क्षितौ ॥१०॥ इत्युत्तरमहादस्तास्संहतः प्राघु शताः । महामन्त्रप्रभावैर्वा सधिण्यो दुष्ट चेतसः ॥६१॥ (सर्वेषाम् ) मनुष्यमात्र का (अपि) भी (शोलम्) शोल (मण्डनम् ) ङ्गार है (1) और (स्त्रीणाम नारियों का विशेषतः विशेषरूप से है (शोलहोना) कशीला स्त्री (यथा) जैसे (कुक्कुरी) कुतिया (खरो) गधी (इब समान (वथा) व्यर्थ है, (अत्र यहाँ (लोके) संसार में (ये) जो (नरा:) पुरुष (च) और (योषिताः) नारियाँ (अपि) भी (सदा) निरन्तरसदाकाल (प्राणवल) अपने जीवन समान (निर्मलम् ) पवित्र ( शीलम् ) शीलधर्म को (रक्षन्ति) रक्षा करती हैं (ते) वे नर-नारी (सुरादिभिः) देव, इन्द्र, मनुष्य आदि सभी द्वारा (पूज्यन्ते) पूजे जाते हैं (यूयम्) तुम (पापिन्य:) पापिनी (दुतिका) दुती (लूतिका) मकडो हो (प्रादरात्) यान्ति से (ऋण) सुनो (अयम ) यह (नष्टधी:) नष्टबुद्धि (श्रेष्ठा) सेठ (पितृसमः) पिता के समान (किम् ) क्या (जल्पति) बोलता है (शीलच्छेदेन) शीलभङ्ग करने से (अत्रलोके) इस लोक में (घ्र वम्) निश्चय ही (नासिकाच्छेदनम् ) नाक काटना (मस्तकम्) शिर (छेदनम् ) काटना (भेदनम् ) भेदन (तथा) और भी (दुराशयाः) खोटे अभिप्राय से (मस्तक) शिर (च्छेदनम्) छेदन (प्राप्नुवन्ति) प्राप्त करते हैं (ततो) तदनन्तर (महा) अत्यन्त (घोरे) भयङ्कर (श्वभ्र) नरक में (धनम् ) धन से (ताउनम्) ताड़ना, (तापनम् ) सन्तापादि (पापकर्मणा) इस पापकर्म के (दुःखम् । दुख (सहन्ते) सहन करते हैं (स.) बह (खलः। दुष्ट (मूढः) मूर्ख (विकलः) विवेकहोन (मदनातुरः) काम से पीडित ( निर्लज्जः ) लज्जारहित (धवल:) सेठ (मद्यपानीक) मद्यपायी समान (इदम्) यह (पापदम् ) पाप करने वाले (वचः) वचन
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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