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________________ श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद ] २६५ तीव्र गर्जना से मानों हितंषी समान उसके स्वर में स्वर मिलाकर चीखने-चिल्लाने लगा। इस प्रकार वह महासती, शीलशिरोमणि वियोगजन्य दुःख से अभिभूत थी, उसी समय क्या हुआ ? ॥७१ से ७६।। उसो समय वह पानो धवल पाता है -- यावत्तावत्स पापिष्ठो धवलो मलिनो हृदि । तां सती स्ववशीकर्तृ दूतीः संप्राहिरणोत् कुधीः ॥७६।। अन्वयार्थ-(यावत्) जबकि बह विलाप कर रही थी (तावत्) तब उसी बीच में (सः) उस (हृदि) हृदय में (मलिन:) कुटिल (पापिष्ठः) पायो (धवलः) धवल सेठ (कुधीः) दुर्बुद्धिने (ताम् ) उस (सतोम् ) सती को (स्ववशोकतु म्) अपने प्राधीन करने के लिए (दूती:) दूती (सम्प्राहिणोत्) भेजी भावार्य--जिस समय मदनमञ्जूषा पति वियोग से विहल होकर अति रुदन कर रही थी, बिलख-बिलख कर तडप रही थी, उसी समय उस पापात्मा धवल सेठ ने उसे वश करने के लिए दूतो भेजीं । ठीक ही है "अर्थी दोषान्न पश्यति" स्वार्थी विषयासक्त को विवेक कहाँ ? दोष-मुरा विचार कहाँ ? दबंदी सेठ ने भी उस अवला के द:ख को और अधिक उदीरित करने का षडयन्त्र किया। उस सती को वश में करने को दासियों का भेजना "जले पर नमक डालना" था। ऋ र हृदय में यह विचार कहाँ ? पापियों का मायाचार अगम्य होता है ।।७७।।। जगुस्तास्तां समभ्येत्य शृणु त्वं सुन्दरी ध्र वम् । श्रीपालस्सागरेमानः पुन याति ते पतिः ॥७॥ श्रेष्ठिनं सद्धनैः पूर्ण दातारं भोगिनं सदा रूपसौभाग्यसम्पन्नं भज त्वं राजपुत्रिके ॥७॥ शरीरसुन्दरं गाढं रूपं ते भुवनोत्तमम् । मा वृथा कुरू भो भने पुष्पं वा निर्जनेवने ॥५०॥ अन्वयार्थ . . (ताः) वे दासियाँ (ताम् ) उस मदनमञ्जूषा को (समभ्येत्य) प्राप्तकर पास जाकर (जगुः) बोलीं, (सुन्दरी) हे मनोरम (त्वम्) तुम (शृण ) सुनो (घ्र वम्) निश्चय ही (श्रीपाल:) श्रीपाल (सागरे) समुद्र में (मग्नः) डूब गया (ते) तुम्हारा (पति:) भर्ता (पुन:) फिर (न आयाति) नहीं पाता है (राजपुत्रि के) हे राजकुमारी (त्व) तुम (सद्धन:) धन से (पूर्णम्) यात-धनी (दातारम्) दानी (सदा) हमेशा (भोगिनम्) भोगी (रूपसौभाग्यसम्पन्नम् ) रूप लावण्य सौभाग्य से सहित (श्रेष्ठिनम् ) धवल सेठ को (भज) सेवन कर (भो) हे (भद्र) भद्रा (४) तुम्हारे (भुवनोत्तमम्) तीनों लोकों में उत्तम (शरीरसुन्दरम् ) सुन्दर शरीर (गाढम् ) अत्यन्त (रूपम् ) सौन्दर्य को (निर्जने) सुनसान (वने) वन में (पुष्पम्) फूल (था) समान (वृथा) व्यर्थ (मा) मत (कुरु) करो।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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