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________________ श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद [२६१ विवाह विधि आगमानुकूल कराकर, अग्निसाक्षी पूर्वक अपनी गुणगणमण्डित मनोज्ञ कन्या गुणमाला का विवाह श्रीपालकोटिभट के साथ कर दिया । कामदेव और रति सदृश ये दोनों शोभित हुए । धर्मानुकूल विवाह क्रिया समाप्त कर माता-पिता को परमानन्द हुआ ! वस्तुतः वह कन्या नागकन्या सदृश सुकुमारी, कल्पलता समाज मनोहर, मन और नयनों को हरण करने वाली थी। राजा धनपाल इस प्रकार के वर-वधू संयोग से आनन्दित हो संकर प्रकार के मण्डप, तोरण, बंजा, माला, प्रादि से विशाल विवाहमण्डप सजवाया। कहीं नत्यशाला, कहीं गायनशाला. कहीं चित्रशाला आदि सजायीं गई थीं । सौभाग्यवती नारियों ने संगीत के साथ नानारत्नचों से मिश्रित चौक पूरे, रमणीय वादित्रों की मधुर ध्वनि से मंडप गूज रहा था । पाठकगण विरद बखान कर रहे थे। जिनालयों को घण्टा, तोरण, ध्वजा, चमर छत्रसिंहासनादि से अलङ्कृत किया गया था। अनेक प्रकार की पूजा, विधि विधान कराये । अनेकों भूपघटों के बुआ से सर्वत्र सुरभि व्याप्त थीं । कन्यादान में राजा ने स्वयं की इच्छा से अनेकों रत्न, सुवर्ण, गज, अश्व, रथ, पालकी, दास दासियाँ आदि प्रदान किये । परम हर्ष से कन्या को योग्य सभी सामग्री प्रदान की। गृह वस्त्राभरण आदि की कमी न हो इस प्रकार की वस्तुओं से उसे समन्वित कर विदा किया ॥५७ से ६१।। तथा महीभुजा तेन श्रीपालः पुण्यसंवलः । सम्प्राप्य परमानन्दं भाण्डागारी पदे धृतः ॥६३।। अन्वयार्थ-(तथा) कन्या विवाह कर (परमानन्दम) परम उल्लास को (सम्प्राप्य) प्राप्तकर (तेन) उस (महीभुजा) महीपति द्वारा (पुण्यसम्बलः) पुण्य ही आधार जिसका ऐसा (श्रीपाल:) श्रोपाल (भाण्डागारी) भण्डारी के (पदे) पद पर (धृतः) नियुक्त कर दिया गया। भावार्थ-अनेकों वस्तु, वास्तव्य, धन, धान्यादि के साथ कन्यादान विधि के अन्तर राजा ने श्रीपाल की योग्यता पुण्य, प्रताप, सदाशीलतादि से प्रभावित हो उसके योग्य भण्डारीपद पर आसीन किया। इससे राजा को बहुत हर्ष था। उसके ग्रानन्द की सीमा नहीं थी । सर्वगुण सम्पन्न, वय, रूप, कुल, गुण, ज्ञान, विद्या, कला आदि वर के सभी गुण श्रीपाल कोटिभट में निरवकाश समावे थे। अतः राजा उसे हृदय से चाहने लगा और पूर्ण आश्वस्त हो उसका सम्मान करता ॥६॥ सत्यं सतां महापुण्यमाहात्म्यं भुवनादिकम् । येन भव्याश्च सर्वत्र लभन्ते सर्व सम्पदम् ॥६३॥ अन्वयार्थ - (सत्यम्) ठीक ही है (सतांपुण्यमाहात्म्यम् ) सज्जनों की पुण्यमहिमा विचित्र होती है (येन) जिसके प्रभाव से (भव्याः ) भव्यजन (सर्वत्र) सब जगह (भुवनादिकम्) घर, मकान महलादि (सर्वसम्पदम्) सर्वसम्पत्तियाँ (लभन्ते) प्राप्त करते हैं । भावार्थ-नीतिज्ञ प्राचार्य कहते हैं कि महापुरुषों का पुण्य वेजोड होता है । पुण्यानु
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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