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________________ २८०] [श्रापाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद (दुस्तरम) कठिनसाध्य तेरना होने पर (अपि) भी (समुद्रम् ) सागर को (उच्च) वेग से (भुजाभ्याम्) दोनों हाथों से (संतरन्तु) तैरने लगा, तैरू । । भावार्थ -धर्मज मनुष्य सङ्कट के कठोर समय में भी धर्म नहीं छोड़ते । क्योंकि उनका यह जन्मजात संस्कार होता है । बित्ति में धैर्य रखना सत्पुरुषों का लक्षण है। सागर का उत्ताल तरङ्गे, विकट जन्तुओं से व्याकीर्ण जल प्रवाह में गिराया गया श्रीपाल पञ्चनमस्कार मन्त्र का जाप करता है, सिद्धसमूह का स्मरण करता है । पञ्चारमेष्ठी का ध्यान करता हुन ही ज्वार-भाटों में युद्ध करता है। ज्यों ही वह असीम सागर के मध्य पड़ा कि गहरे जलहर में डबा, पुनः उछला जल प्रवाह के साथ चलने लगा। "जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय।" जिसका पुण्य प्रबल होता है और दोर्घ आयु रहती है उसे मारने वाला स्वयं मरण की तैयारी करता है। नोति कारों ने कहा, "जितने गगन में तारिका, उत्तने शत्रु होंय कृपा रहे भगवान की, मार सके न कोय ।" .. 17 N - । Mad : . RAYmaa अर्थात् -प्रख्यात गत्रु भी अकेले पुण्य जीव से परास्त हो जाते हैं । श्रीपाल ने फलक का सहारा पकडा, कुछ आश्वत हुआ। इधर-उधर नजर दौडाई किन्तु सिवाय जलराशि के कुछ भी दृष्टिगत नहीं हुआ । पोत नहीं दिखने पर उसे निर्णय करते देर न लगी । वह समझ गया, मैं ठगा गया हूँ। किसो षडयन्त्री ने मुझे धोखा दिया है, मैं निश्चय हो वञ्चित हुआ हूं तो भी मुझे पर।क्रम. तो करना ही होगा । चलो, अब भुजाओं से ही यह उदधि चोरना है । यद्यपि यह कार्य महा दुःसाध्य था परन्तु अन्य उपाय भी तो नहीं था । वह कोटिभट धर्म की नौका पर सवार था उसे निराशा क्यों होती ? उसकी नाव सुद्ध और निश्छिद्र थी, अर्थात् पवित्र देव, शास्त्र, गुरु की श्रद्धारूपी जहाज उसके पास था उसो का आलम्बन लिया । सिक्षचक्र का ध्यान करता हुआ चलने लगा, बढ़ने लगा, कहाँ, किधर, क्यों जाना है, कब तक तट न मिले । पुण्य का सम्बल लिए यह निर्भय वीर बढने लगा। जिनभक्ति रसायन से पुष्ट भव्यात्मानों को भय कहाँ ? वह हताश नहीं हुआ, अपूर्व साहसी दोनों भुजाओं से निरन्तर अथाह जलराशि को भेदता बढ़ने लगा । उसे यही कोई अदृश्य शक्ति प्रेरणा दे रही थी कि डरो मत बढे जायो, यह पार करना ही है ।।२६, ३०, ३१।। HMNEPAL
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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