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________________ २६६] [श्रीपाल चरित्र चतुर्थ परिच्छेद प्रापने किस पुर को अपने जन्म से अलङ्कृत किया है ? आपका वंश, कल कौनसा है ? राज्य कहाँ हैं ? यहाँ शुभागमन किस कारण से हुअा इत्यादि सम्पूर्ण वृतान्त प्रेभ स काहए । मेरे प्रश्न पर कोप न करें । सरलता से मैं अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए पूछ रही हूँ। अतः मेरी अभिलाषा पूर्ण करने का कष्ट करें ।।१६१।। उचाय कामिनी सोऽपि श्रीपालः शृण सुन्दरि । अवन्तिविषये पुर्यामुज्जयिन्यां गुणोज्वले ।।१६२॥ अस्ति मे जननी पूता स्वनाम्ना कमलावती। भामिनी राजपुत्री च सती मदनसुन्दरी ॥१६३। अन्वयार्थ---(सः) वह (श्रीपाल:) श्रीपाल भूपाल (अपि) भी (कामिनी) प्रिया के प्रति (उवाच) बोले, (सुन्दरि ! ) भो सुन्दरि ! (शृण) सुनो, (गुगोज्यले ) अनेक गुण गौरव से समुज्वल (अघन्तिविषये) अवन्तिदेश में (उज्जयिन्याम्) उज्जयिनी नामकी (पुर्याम् ) पुरी में (पूता) पवित्रात्मा (स्त्रनाम्ना) अपने नाम (कमलावतो) कमलावती से विख्यात (मे) मेरी (जननी) जन्मदात्रीसविता (माता) (अस्ति) है (च) और (भामिनी) पलि (राजपुत्री) राजकुमारी (सती) शीलशिरोमणि, पति भक्ति में (परायण) तत्पर (मन्दनसुन्दरी) मैनासुन्दरी (अस्ति) है । तथा और भी अन्य परिवार, साथो जन हैं सुनो-- अङ्गरक्षक शूराश्च शतसप्त प्रमाणि मे। तथाङ्गविषय चम्पापुर्या चाद्यप्रवर्तते ॥१६॥ वीरादिदमनो नाम पितृव्यो भूपतिस्तथा । जगौ वृत्तान्तकं सर्व स्वकीयां कामिनी प्रति ॥१६५।। ___ अन्वयार्य- (च) और (सप्त) सात (शत) सौ (मे) मेरे (प्रमाणि) संख्या प्रमाण (मे) मेरे (शूराः) सुभट (अङ्गरक्षकाः) अङ्गरक्षक हैं (तथा) तथा (अद्य) इस समय (अङ्गविषये ) अङ्गदेश में (चम्पापुर्यम् ) चम्पापुरी में (वीरादिदमनों) वीरदमन (नाम) नामका (पितृव्य) मेरा चाचा (भूपतिः) राजा (प्रवर्तते) शासन कर रहा है (तथा) उसी प्रकार (सर्व) सम्पूर्ण (वृत्तान्तकम् ) चरित्र (स्वकीयाम ) अपनी (कामिनीम ) प्रियबल्लभा के (प्रति) प्रति (जगी वणित किया। भावार्थ .. श्रीपाल कोटिभट अपनी अनिंद्य सुन्दरी भार्या से कुछ भी छ पाना नहीं चाहता था। क्योंकि उसकी जिज्ञासा का असमाधान उसकी मनोव्यथा का कारण बन सकता था । उसे उदास देखना कोटिभट को असह्य था । अतएव उसने विस्तार से अपना सकल वृतान्त बताना उचित समझा । वह कहने लगा 1 "हे प्राबल्लभे! सुनों, मेरे अत्यन्त शूरवीर
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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