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________________ श्रीपाल चरित्र चतुर्थ परिच्छेद] [२६५ भावार्थ-श्रीपाल कोटिभट प्रानन्द से विवाह कर अपनी अद्वितीय सुन्दरी परमभीलवती पत्नी मदनमञ्जूषा को लेकर आया । अतुल वैभव साथ में मिला ही था । सब सामग्री सहित सागरतट पर पहुंचा 1 वहीं धवल सेठ था । अतः पिता तुल्य उस सेठ के पास सर्वविभूति सहित आया। सज्जन व्यवहार कुशलता का त्याग नहीं करते । तत्वज्ञ वैभव पाकर विमूढ नहीं होते। विनय का त्याग नहीं करते । कृतज्ञ जिनधर्म परायण, सिद्धाराधक श्रीपाल भला सेठ का उपकार कैसे भूलता ? नहीं । अतः पिता समान उस सेठ का समादर कर उसे अपना प्राप्त सर्व वैभव दिखलाया ।।१५६।। एकदा तं प्रियं प्राह मञ्जूषा मदनादिका । कति प्रमाणास्ते सन्ति कामिन्यो गुणमण्डिताः ।।१६०॥ अन्वयार्थ (एकदा) किसी एक समय (मदनादिका मञ्जूषा) मदनसुन्दरी (तम्) उस अपने (प्रियम्) प्रिय पतिदेव से (प्राह) बोली (ते) आपके (गुणमण्डिताः) गुणों से विभूषित (कामिन्यः) पत्नियां (कतिप्रमाणा) कितनी संख्या में (सन्ति) हैं। श्रीपाल अपनी कामिनी मदनमक्षा को पाकर विषय भोगों में अनुरक्त हो गया। जाके मेने से दिौर चांदी गाने नीतने लगी ! किन्तु मोहान्ध नहीं हुआ । धर्म ध्यान और तत्त्व चर्चा एवं धर्मकथाएँ उसके परम मित्र समान स्मृति में थे । अर्थात् धर्मध्यान पूर्वक रहने लगे । एक दिन उसकी प्रिया ने प्रश्न किया - भावार्थ--एक दिन विनोद करते हुए मदनमञ्जूषा ने अपने प्राणवल्लभ से पूछा । हे नाथ मुझ से अतिरिक्त गुणविभूपिता कितनी प्रिया हैं ? पति के मन की थाह लेना नारी का सहज स्वभाव है । अत: यह स्वाभाविक प्रश्न किया ।।१६०।। तथा और भी अपने पति का परिचय जानने की जिज्ञासा व्यक्त की--- अस्ति ते जननी कुत्र सती सद्गुरणशालिनी । वदत्वं प्रेमतस्सर्व वृत्तं ते शर्मदायकम् ॥१६॥ अन्वयार्थ --मदनमञ्जूषा विनम्रता से पूछ रही है. हे देव ! (ते) आपकी (सती) शीलवती (सद्गुणशालिनी) श्रेष्ठ गुण विभूषिता (जननी) मातेश्वरी (कुत्र) कहाँ (अस्ति) है ? कृपया (ते) आपका (शर्मदायकम् ) सन्तोष प्रदायक (सर्वम्) सम्पूर्ण (वृत्तम् ) चरित्रपरिचय (प्रेमतः) अानन्द से (वद) कहिए। भावार्श-मदनमञ्जूषा विनम्र हो अपने पतिदेव से उनका जन्म परिचय ज्ञात करने की प्रार्थना करती है । आपकी साध्वी-शीलवती, सद्गुणघारिणी माता जी कहाँ हैं।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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