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________________ श्रीपाल चरित्र चतुर्थ परिच्छेद ] [२६३ की लधु से लघु वस्तु को याचना मनीषियों के लिए लज्जा का विषय है ! मांगने और मृत्यु में कोई अन्तर नहीं है अपितु मांगना मृत्यु से भी अधिक नोच है खोटी है । लोक व्यवहार में भी नीतिकार कहते हैं "हे मन वे नर मर गये जो भर मांगन जाय ।" अतः हमारे समाज के थोथे धन के अभिमानी और युवक समाज को इस रहस्य को समझने की चेष्टाकर नारी जानि पर किये जाने वाले प्रत्याचारों का निराकरण करना चाहिए ।।१५२. १५३।। सती मदनमञ्जूषां दिव्यभूषां गुरगोज्वलाम् । कोमलां कल्पवल्लीव मनोनयनबल्लभाम् ॥१५४।। नानारत्न सुवर्णादि मणिमुक्ता फलोत्करम् । पट्टकूलानि चित्राणि सुवस्त्राणि पुनर्ददौ ॥१५५।। अन्वयार्ग-- दहेज की मांग नहीं होने पर भी राजा ने अपनी प्रियपुत्री को सब कुछ दिया (दिव्यभूषाम् ) दिव्य-मनोहर अलङ्कारों से अलकृत, (गुणोज्वलाम् ) गुणरूपी किरणों से प्रकाशित, (कोमलाम्) अत्यन्त सुकुमारी (कलावल्लीइव) कल्पलता के समान (मनोनयनवल्लभाम्) मन और नयनों को प्रिय (सतीम् ) शीलवती (मदनमञ्जूषाम् ) मदनमञ्जूषा को (नानारत्न) अनेकों रखन, जवाहिरात (सुवर्णादि) सुवर्ण के (मणिसुक्ताफलोकरम्) मणि, मुक्ताफलों से जटल आभूषण तथा (पट्टकूलानि) सुवर्णादि के वस्त्र, रेशमी जड़े वस्त्र (पुनः) फिर और भी (चित्राणि) अनेक प्रकार के (सुबस्त्राणि) पोषाकादि (ददी) दिये। भावार्थ -विद्याधर नरेश्वर ने अपनी पुत्री को कन्यादान में अनेको वस्तुएँ प्रदान की । वह सुता दिव्यवस्त्राभूषणों से सजायी गई थी। स्वभाव से ही अनेकों उत्तम गुणों से विभूषित थी, शिरीस कुसुम के समान उसके आङ्गोपाङ्ग सुकोमल थे, वह साक्षात् कल्पलता के समान प्रतीत हो रही थी। उसके अङ्ग-अङ्ग सं रूप, लावण्य, सौन्दर्य की छटा छन-छन कर रही थी । आबालवद्ध सभा के मन अरि नयन उस पर न्याछावर हो रहे थे । महासती, विनय, लज्जा और शोल से नम्रीभत थी। इस प्रकार की गुणरत्नों को भमि स्वरूप उस अपनी पुत्री को राजा ने अनेकों उत्तम रत्न, रत्नजटित सुवर्ण के वस्त्राभूषण, मणिमुक्ताफलों से जटित अनेकों हार, शूगार के साधन पदार्थ भेंट किये अनेकों प्रकार के बहुमूल्य पदार्थ भेंट में दिये ।।१५४-१५५।। और क्या-क्या दिया दासीदासगजाश्वादि समूह गुरपशालिने । चन्दनागरूकपूर सारवस्तुशतानि च ॥१५६।। तथा सन्तुष्टचित्तस्सन सुविद्या बन्ध मोचिनीम् । परशस्त्रहरांविद्यां ददातिस्म जगद्विताम् ॥१५७।।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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