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श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद]
[ १३ भावार्थ-वह मगध देश सुन्दर बनप्रान्तों और बगीचों से शोभित था जहाँ चारों और जिन भवनों को पंक्तियां ध्वजादिकों से उत्तम शोभा को धारण कर रही थीं।
यत्र भव्या बसन्त्युच्चैः धनर्धान्यजनयुताः ।
पूर्वपुण्य प्रसादेन जय नादन नित्यशः ॥ ३४ ॥
अन्वयार्थ--(यत्र) जहाँ (धनैर्धान्यः) धन धान्यों से (जनेः युताः) परिजन पुरजनों से युक्त (पूर्वपुण्यप्रसादेन युतः) पूर्व कृत पुण्य प्रसाद से सहित (नित्यशः जय नादेन युतः) निरन्तर जय नाद से युक्त (भव्याः वसन्ति) भव्य जीव रहते हैं ।
भावार्थ ---उस मगध देश के निवासी सभी परिजन पुरजन सुन्दर रूप, गुण, धन धान्यादि से सम्पन्न थे। सब प्रकार से सुखी थे तथा निरन्तर धर्म प्रभावना में तत्पर रहते थे जो उनके पूर्व भव में उपाजित विशिष्ट जिनक्ति प्रादि सातिशय पुण्य का फल है । पुण्य के फलस्वरूप ही जीव को उत्तम कुल, जाति सुन्दर रूप, श्रेष्ठ जिनधर्म की प्राप्ति होती है ।
यो देशो राजते स्मोच्चैः पुरैाममनोहरः।
खेटैस्संवाहनश्चापि चक्रीव रार्जाभव॑तः ॥ ३५ ॥ अन्वयार्थ (यः) जो अर्थात् वह मगध देश (पुराममनोहरः) सुन्दर मनोहर ग्रामों और नगरों से (खेटैस्सवातश्चापि ) और भी सुन्दर खेट और संवाहनों के द्वारा तथा (चक्रीव राजभिः वृतः) चक्रवर्ती के समान वैभवशाली राजाओं से घिरा हुआ (राजतेस्म) शोभायमान था।
भावार्थ-उस मगध देश में अनेकों मनोहर सुन्दर ग्राम, नगर, खेट, संवाहन थे जो अपनी शोभा से स्वर्म को भी जीतने वाले थे तथा चक्रवर्ती के समान वैभवशाली राजारों से सेवित वह मगध देश अनुपम शोभा का स्थान था।
ग्राम-जिसके चारों ओर दीवाल-कोट बने रहते हैं उसे ग्राम कहते हैं । यह कोट, काँटों की झाड़ी, चूना मिट्टी आदि किसी का भी हो सकता है।
पुर या नगर-- जो चारों ओर से दीवाल और चार दरवाजों से संयुक्त होता है उसे नगर कहा जाता है।
खेट. नदियों और पर्वतों से वेष्टित रहने वाले गांव को खेट संज्ञा है । कर्वट-चारों ओर से पर्वतमालाओं से जो घिरा रहता है उसे कर्बट कहते हैं ।
मटम्ब या मडम्ब–५०० गाँवों से संयुक्त रहने वाले गांव या बस्ती को मडंब कहा जाता है।