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________________ २२६ [श्रीपाल चरित्र चतुर्थ परिकछेन्द सकता है । अरण्य पार करना भी हो सकता है उसमें पशु, मनुष्य, राक्षसादिकृत उपद्रव या सकते हैं। बड़े-बड़े शहरों में धर्मविहीन दास, दासियां, वेश्याएँ आदि प्रलोभक जनों के फन्दे में आने की संभावना हो सकती है। तुम्हें राजदरवारों में भी जाना होगा । राजाओं के अन्तःपुर में भी जाना हो सकता है, राजा रानियाँ अनेक प्रकार की सुशील दुःशील होती हैं । बहाँ अपने शील, संयम, धर्मरक्षण में सावधान रहना परमावश्यक है। हर समय अपनी कुलमर्यादा और धर्मरक्षण का ध्यान रखना आवश्यक है । इसी प्रकार हे गुण भूषण ! सुकुमार ! धर्मत ! तुम जना खेलने आनों दर्जनों चापलसों, निर्दयो धर्म-कर्म विहीन, चारित्रभ्रष्टजनों, क्रू र सिंह, व्याघ्रादि पशुओं, शींगवाले पशुओं, सर्प, भुजङ्ग विच्छ आदि जन्तुनों का कभी भी विश्वास नहीं करना । इनसे हमेशा दूर, बचकर रहना । क्योंकि ये प्राणघातक भी हो सकते हैं, कष्ट दायक भी । चुप-चाप शान्त बैठे हों तो भी अचानक हमला बार बैठते हैं। सोते भी हों तो भी इनको लांचना या छेड़ना नहीं चाहिए। जगाना नहीं चाहिए । निरन्तर इनसे बचकर ही रहना चाहिए। . इत्यादिकं भरिपत्वा च माता साश्रु विलोचना । तं समालिङ्गय गन्धाविधाय तिलकं शुभम् ॥४५॥ अन्धयार्थ— (इत्यादिकम् ) उपर्युक्त प्रकार अनेक शिक्षा (भगित्या) कहकर (साश्रु) अथपुरित (लोचना) नयनों वाला (पाता) माता ने (तम् ) उसको-श्रीपाल को (समालिङग्य) हृदय से पालिङ्गणकर (च) और (गन्धाद्य:) कुकुम आदि लेकर (शुभम् ) उत्तम मांगलिक (तिलकम) तिलक (विधाय) लगाकर।। दध्यक्षतादिकं क्षिप्त्वा मस्तके शुभवर्शने । भूयात ते दर्शनं शोघ्र समुवाच वचो हितम् ।।४६॥ अन्वयार्थ -(दधि) दही (अक्षतादिकम् ) सफेद चावल, सरसों आदि (मस्तके मस्तक पर (क्षिप्त्वा) क्षेपण कर (शुभदर्शने) है शुभ-सौम्वदर्शने (शीघ्रम् ) जल्दी ही (ने) तुम्हारा (दर्शनम् ) दर्शन, मिलन (भूयात् ) हो इस प्रकार (हितम ) हितकारी (वच:) बचन (समुवाच) बोली-कहे। भावार्थ-उपर्युक्त प्रकार अनेकों शुभ, उत्तम, आत्महितकारी, कल्याणकारी शिक्षाएँ माता ने ग्राने पुत्र को दी। विदुषी, धर्मात्मा उभय कुल कमल विकास करने वाली ही सच्ची माता होती है । जो अपने पुत्र का सर्वाङ्गीण विकास और सारभूत अभ्युदय चाहती है। दोनों लोक की हितेच्छ होती है वही मां अपनी संतान को न्यायोपाजित धन के साथ गुणी, यशस्वी धर्मात्मा, संयमी और सच्चरित्र देखना चाहती है । दुर्जनों की सङ्गति से बचाती है और सत्पुरुषों के साथ सहबारा कराता है । अतएव कमलावती ने भी हराएक प्रकार से अपने एकमात्र पुत्र को सर्व प्रकार सावधान कर दिया । यद्यपि मातृस्नेह के ब्रांध को दृढ़ता से भो रोक न सकी । प्रेमाश्रुओं से विगलित लोचनों से प्यारे पुत्र को निहारा । मंगलकारी शुभ
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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