________________
१८२]
[श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद हर शुभप्रदायक चन्दन, अगुरु कपूरादि द्रव्यों से लिखना चाहिए 11९३, १४, ६५॥ अचल अभिषेक पीठ पर श्री जिनप्रतिमा जी और सिद्धचयन्त्रराज की जो स्वर्ण-रजतादि के पत्रे पर खदा हुआ हो, विराजमान करे । तदनन्तर मन्त्रादि बोलकर विधिवत शुद्धभावों से पवित्र जल, इक्षुरस, घृत (घी) दूध, दही, सौषधि इन पञ्चामृतों से क्रमशः अभिषेक कर सुगन्धित केशर चन्दन का लेपन कर पुष्पवृष्टि करे, प्रारतो उतारे पुनः कर्पूरादि से सुवासित स्वच्छ जलाभिषेक करे । स्वच्छवस्त्र से थी जिनविम्ब को पोंछे, यंत्र पोंछ कर विराजमान करे । तदनन्तर अष्टद्रव्यों से भक्तिपूर्वक परम आदर से अष्टद्रव्यों के द्वारा पूजा करे ।।६६-६७।। अब क्रमश: अष्टद्रव्यों से पूजन का विधान बतलाते हैं । सर्व प्रथम जल से पूजा करें
कर्पूरवासितैः स्वच्छः पवित्रस्तीर्थवारिभिः ।
पूजनीयं जगत्पूज्यं सर्वसिद्धिकरं परम् ॥१८॥
अन्वयार्थ- (करवासितैः) कपूर मिश्रित सुगन्धित (स्वच्छ:) प्रासुक (पवित्रः) पवित्र (तीर्थवारिभिः) गङ्गादि तीर्थों के जल से (सबै) सम्पूर्ण (परम) उत्कृष्ट (सिद्धिकरम्) सिद्धियों के करने वाले (जगत्पूज्यम्) विश्वबन्ध-संसारपूजित सिद्धचक्र (पूजनीयं) पूजने योग्य है अर्थात् पूजा करना चाहिए।
भावार्थ-श्रीजिनबिम्ब और यन्त्र को विधिवत् आह्वानादि पूर्वक स्थापना कर सर्व प्रथम जल से पूजा करना चाहिए । जल गंगांदि पवित्र तीर्थों का हो, पुनः यथायोग्य वापिकादि का भी हो सकता है, परन्तु शुद्ध होना चाहिए यथा विधि छना हो कर्पूर लवंगादि से सुवासित - प्रासुक किया हो। इस प्रकार के परम पवित्र जल से सम्पुर्ण सिद्धियों के दाता, विश्व-पूज्य सिद्धचक्र को जल पूजा करना चाहिए ॥६॥
चन्दन पूजा का स्वरूप:
चासचन्दनकाश्मीरकर्पूरागरुसत्भवः ।
अर्चनीयं जगत् पाप ताप संदोह नाशनम् ॥६
अन्वयार्थ-(जगत्पापताप संदोह) संसार पाप ताप के समूह को (नाशनम् ) नष्ट करने को (चार) सुन्दर (चन्दन) मलयागिरिचन्दन, (काश्मीर) केशर (कपूर) कपूर (अगुरु) अगर से (सत्भवैः) तैयार चन्दन से (अर्चनीयम्) अर्चा करना चाहिए।
भावार्थ-संसार जन्ध पाप, ताप का नाश करने के लिए चन्दन से श्रीजिनपूजनसिद्धचक्रापूजन करना चाहिए। चन्दन चहाने से संसार संताप का नाश होता है । वह चन्दन शुद्ध मलयागिरि का, केशर से युक्त होना चाहिए।
अक्षतरक्षतं?तैस्तुङ्गपुजीकृतस्सितः । पूज्यते परमानन्ददायको मुक्तिनायकः ॥१०॥