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श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद]
[ १८१ अन्वयार्थ-(बा) अथवा (सौवर्ण रजतं, ताम्र ) सोने, चाँदी व तम्नेि का (शुभम् ) शुभ (यन्त्र) यन्त्र (क्रियते) करे-बनवावे (जिनेन्द्रप्रतिमा) जिनबिम्ब के आगे (निश्चले) स्थिर (पीठे) सिंहासन पर (संस्थाप्य) स्थापित कर-विराजमान कर -६५||
तद्वयं पञ्चपीयूषः सत्तोयेक्ष घृतादिभिः ।
दुग्धर्दधिप्रवाहैश्च स्नापयित्वा महोत्सवः ।।९।। अन्वयार्थ-(तद्वयम् ) उन प्रतिमा और यन्त्र दोनों का (महोत्सव:) महाउत्सवपूर्वक (सत्तोयेक्ष शुद्धजल, इक्षुरस (दुग्धैः) दूध (च) और (दधिप्रवाहैः) दही के प्रवाह से (घृतादिभिः) पत आदि (पञ्चपीयूषैः) पञ्चामृतों द्वारा (स्नापयित्वा) स्नपन-अभिषेक करके-पुन: ।।६।।
कर्पूरागरूकाश्मीरचन्दनैलादिधस्तुभिः ।
सर्वोषधिजलेनोच्चैः प्रक्षाल्यपरमादरात् ॥६॥
अन्वयार्थ-(कारागृरुकाश्मीरचन्दनलादि) कपर, अगुरु, केशर, चन्दन इलायची, लवङ्ग, जावित्री, जायफलादि (वस्तुभि:) वस्तुओं से मिश्रित (सौं षधि जलेन) सर्वा षधि के जल से (उच्चैः) विशेष रूप से (परमादरात्) परमभक्ति से (प्रक्षाल्य) प्रक्षालन-अभिषेक करके-भक्ति से पूजा करे।
भावार्थ--हे पूत्रि उस सिद्धचक्र विधान को कब, किस प्रकार किस विधि से करना चाहिए यह मैं (प्राचार्य श्री) कहता हूँ,-प्राषाढ, कार्तिक और सुमनोज्ञ फाल्गुन महीने में जब-जब नन्दीश्वर पर्व पाता है तब ही करना चाहिए ।।८८-८६॥ शुक्लपक्ष की अष्टमी से प्रारम्भकर आठ दिन तक पूजा करें। प्रथम श्री जिनालय की प्राकर्षक, मनमोहक शोभा करें। अर्थात् घण्टा, स्वजा, तोरण, वन्दनवार, छत्र, चमरादि से सुसज्जित करें। तीनों लोक को मुग्ध करने वाली अनुपम झालर, माला आदि से शोभा करें ।।१०॥ पूजा करने के उत्साह से भक्ति पूर्वक गुरू सान्निध्य में जाकर विनम्र प्रार्थना कर पूजा विधान की आज्ञा मांगें। गुरू आज्ञा और साक्षी में किया विधि-विधान विधिवत् होने से विशेष सुख का हेतु होता है । अतः आज्ञा लेकर पथाशक्ति सुखदायक श्रेष्ठ तप धारण करें-अनशन ऊनोदरादि तप लेवें ।।११।। गुरू साक्षी में आठ दिन के लिए शुद्ध अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार करें । महान सुख की खनिरूप सर्वजीबों को अभयदान दिलाबे । अर्थात् आठ दिन तक कोई भी किसी प्रकार की हिंसा न करें इस प्रकार का प्रयत्न-उपाय करें करावें ।।६२॥ पूर्वाचार्यों के उपदेशानुसार है बीजाक्षर तथा अन्य वीजाक्षरों से सहित सिद्धचक्रयन्त्र की रचना करें । ये बीजाक्षर महा अक्षर कहे जाते हैं और विशिष्ट शक्ति एवं प्रभाव से युक्त होते हैं । बुद्धिमानों को यथाविधि सुवर्ण, रजत अथवा ताम्र पत्र पर शुभ योग में यन्त्र रचना करें-बनायें । उस यन्त्र को जिनेन्द्रप्रभु की प्रतिमा के सामने सिंहासन पर विराजमान करें। अभिषेक का पीठ अचल रहना चाहिए । प्रतिमाजी स्थिर रहें इसका ध्यान रखना चाहिए । यन्त्र को स्वर्णादि के पात्र में पवित्र, मनो