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श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद ] (परमः) उत्तम (धर्म:) धर्म, (सत्येन) सत्यद्वारा (उत्तमम् ) उत्तम (मुखम् ) सुख, (च) और (सत्येन) सत्यधर्मद्वारा (भयानक.) प्रज्वलित हुयी (वन्हिः) अग्नि (अपि) भी गीतताम ) शीतल (याति) हो जाती है । (समुद्रः) सागर (स्थलताम) भूमिरूपता को (ऐति) प्राप्त हो जाता है (शत्रुः) अरि (मित्रायते) मित्र बन जाता है । (सर्वदेहिनाम ) सर्व प्राणियों में (विश्वासः) विश्वास (सत्येन) सत्यद्वारा होता है (परमानन्दश्च) और परमानन्द भी (तस्मात् ) इसलिए (हिताथिभिः) हित चाहने वालों को (सर्वप्रकारेरण) सर्वप्रकार से ( सत्यम ) सत्य (वाच्यम ) बोलना चाहिए ।
भावार्थ--याचार्यश्री मदनसुन्दरो को सम्बोधन कर सत्यभाषण का माहात्म्य समझाते हैं । हे पुत्रि! सत्याण अत या सत्य से उज्ज्वल कीति होती है, निर्मल यश चारों ओर व्याप्त हो जाता है। सत्य से निष्पाप लक्ष्मी प्राप्त होती है । सत्य से परमोत्कृष्ट धर्म मिलता है। सत्य से उत्तम सुख पाता है । सत्य हो भयानक जलती आग भी पानी समान शीतल हो की है। सागर का ता हो जाता है चीन सागर का पानी भी सत्यबल से तूख जाता है शत्रु भी भित्र हो जाते हैं । सत्य से सबका विश्वासपात्र हो जाता है। सत्य मे परमान्द मिलता है । इसलिए सुख चाहने वालों को सदा सत्य बोलना चाहिए । सत्य धर्म सदैव हितकारी होता है ।।१८-१६-२०॥
सत्यंशर्मशतप्रदं शुभकरं सत्यांसुकीतिप्रदम् । सत्यंजीवदयाद्रुमौधविलसत्पानीयमाहुर्बुधाः ।। सत्यंसर्वजन प्रतीतिजनक, सत्यंमुसंम्पत्प्रदम् ।
सत्यंदुर्गतिनाशनं गुणुकर, सत्यं श्रयन्तूतमाः ॥२१॥ अन्वयार्थ--सत्यव्रत का उपसंहार करते हुए आचार्य श्री कहते हैं--(सत्यं ) सत्य (शर्मशतम् ) सैकडों सुख (प्रदम ) देनेवाला, (शुभकारम ) शुभ करने वाला (सत्यं) सत्य (सुकीर्तिप्रदम) उज्ज्वल कीति देने वाला, तथा (जीवदयाद्र मोघ) जीवदयारूपी वृक्षों के समूह को (विलसत्पानीयम) सींचने वाला-प्रफुल्ल करने वाला पानी है ऐसा (बुधाः) विद्वज्जन (प्राहुः) कहते हैं । (सत्यं) सत्य (सर्वजन प्रतीतिजनकम् ) सर्व प्राणियों में प्रतीति विश्वास उत्पन्न करने बाले (सत्यं) सत्य (सुसम्पत्प्रदम् ) उत्तम-सम्पदा देने वाला (दुर्गतिनापानम् ) दुर्गति का नाश करने वाला (सत्यं) सत्य (मुणकरम् ) गुणों को करने क.ला (सत्यम ) सत्ययत (उत्तमाः) उत्तमजन (श्रयन्तुः) आश्रय कर अर्थात् धारण करें।
भावार्थ---आचार्य श्री कहते हैं कि--विद्वानों का कथन है कि सत्य सैकड़ों सुखों को देने वाला है । शुभ-पुण्य का करने वाला है । उज्ज्वल यश का विकास करने वाला सत्य ही है। सत्य जीवदयारूपी वृक्षों के समूह को हराभरा रखने वाला जल है । सत्य प्रतीति-विश्वास के कारण है । सत्य बोलने वाले का सर्वजन विश्वास करते हैं । उत्तम सम्पत्ति देने वाला सत्य है । सत्य हो दुर्गति का नाश करने वाला है । सत्य सर्बगुणों का कारण है । अतः उत्तम पुरुषों को सत्य का सदा पाश्रय लेना चाहिए ।।२१।।
।।इतिसत्य धर्म निरूपम् ।।