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________________ १५४] | श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद सागरतिरने को नौकारूप ( जीवदया ) अहिंसा ( भो भव्या ) हे भव्य प्राणियों ( भवतां ) आपका ( नित्यं ) निरन्तर (सदा ) सर्वत्र ( मङ्गलम् ) मंगल-कल्याण ( कुर्यात् ) करे । भावार्थ - यहां दयाधर्म का लक्षण कथन समाप्त करते हुए भव्यजनों को श्राचार्य श्री प्राशीर्वाद प्रदान करते हैं। जिस प्रकार शीलवती नारी प्रमोद करने वाली होती है, उसी प्रकार दयारूपी प्रमदा उत्तम आनन्द की जननी है। यह दया श्रागत विघ्नसमूह को नाश करने बाली है । शान्ति को देने वाली है। क्षमा गुग्ग की विधायिका है। विशुद्धकीर्तिलता को फैलाने वाली है । विशुद्ध-निर्मललक्ष्मी की प्रदात्री है। सत्समागम कराने वाली है । दयालु के पास सज्जनों का समागम हो ही जाता है । यह दया तीनों लोकों के प्राणियों का हित करने वाली है। जिनेन्द्र भगवान के मुखारविन्द से निकली है। संसार समुद्र के पार करने को सुदृढ जहाज है। नित्य हो कल्याणकारिणी है । इस प्रकार की दया है भव्यात्मन् प्राणियो आप सबका सदैव कल्याण करे, मङ्गल करे ।। १६॥ सत्यस्वरूप वर्णन: • सत्यं हितं मितं पथ्यं विरोध परिवजितम् । वाच्यं कर्णामृतं वाक्यं विवेकविशदेः नरः ॥ १७॥ अन्वयार्थ (विवेकविशदेः ) हेय और उपादेय का विचार करने में चतुर (नरे.:) पुरुषों द्वारा (सत्यम् ) सच्चे, ( हितम् ) हितकारक, ( मिलम् ) सीमित, ( पथ्यम् ) गुणोत्पन्न करने वाले, (विरोध) कलह ( परिवजितम् ) नहीं करने वाले, (कर्णामृतम्) कानों में अमृतसींचने वाले मधुर ( वाक्यम् ) वचन ( वाच्यम्) बोलना चाहिए । यही सत्य व्रत है । भावार्थ- -सत्याण धन का लक्षण समभ आचर्य श्री कहते हैं कि विवेकी, चतुर पुरुषों को सदा हित, मित, प्रिय बारगी बोलना चाहिए। सत्याण बती को कभी भी कलह विसम्बाद होने वाले वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए | सबके साथ प्रिय-मधुरवाणी बोलना चाहिए । सत्यभाषण करने से विरोध समाप्त हो जाता है। सत्याण व्रती महितकारी असत्य भाषण का त्याग करे ।।१७५, सत्येनविमलाको तिस्सत्येन कमलामला | सत्येन परमोधर्मस्सत्येन सुखमुत्तमम् ।। १८ ।। ( सत्येन शीततांयाति वन्हिश्चापि भयानकः । समुद्रस्स्थलतामेति शत्रुभित्रायते सुते ? ।। १६ ।। सत्येन परमानन्दो विश्वासः सर्वदेहिनाम् । तस्मात्सर्वप्रकारेण सत्यं वाच्यं हितार्थिभिः ||२०|| त्रिकुलम् || अन्वयार्थ - - ( सुते ! ) हे पुत्र मदनसुन्दरी ! ( कलिः ) निर्मलयश ( सत्येन ) सत्य से ( अमला) निर्मल सत्येन ) सत्य के द्वारा ( विमला(कमला) लक्ष्मी, (सत्येन ) सत्य से
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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