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________________ प्रशंसा हुई तथा पूण्य प्राचार्यों, मुनियों एवं अनेक पाठकगणों से प्रशंसा पत्र हमारी समिति को प्राप्त होते रहे हैं । आपके द्वारा लिखित ग्रन्थों की इतनी मांग है कि सीमित प्राधिक साधनों के कारण हम मांग को पूर्ण नहीं कर पाते । समिति से प्रकाशित यह "अष्टम ग्रन्थ" "श्री सिद्धविधान पूजातिशय प्राप्त श्रीपाल चरित्र" की कथा भी पाठकगणों को प्रथमानुयोग की ज्ञानवद्धि में सफल होगा। इस चरित्र से नारी जीवन के शील, सदाचार, पतिभक्ति, सद्गहिणी और उसके कर्तव्य परायणता के साथ साथ वह किस प्रकार धर्म की छाया में अपने ऊपर पाये कष्टों के स्वेदबिन्दुओं को सुखा कर शान्ति प्राप्त करता है, का अनुभव हमें प्राप्त करायेगा। श्रीपाल महाराज द्वारा पूबभव में नियों की निन्दा एवं उन्हें दिये कष्टों के दष्परिणाम स्वरूप वर्तमान में भोगे कष्टों को पढ कर ऐसे मुनिनिन्दकों की आखें खोलने एवं उन्हें सदमार्ग पर लाने में यह ग्रन्थ प्रति सफल होगा, जो अपने पूर्व दुष्कर्मों के कारण अपने मार्म से भटक गये हैं, ऐसा मेरा विश्वास है जिस प्रकार इतिहास से भावी मार्ग बनाने में बुद्धिजनों को सहायता मिलती है उसी प्रकार इस कथा (इतिहास) से मुनिनिन्दक जो पाप की गठरी बांधने में अज्ञानतावश लगे हुए हैं उन्हें पुण्यमार्ग प्रशस्त करने के लिए यह ग्रन्थ अवश्य सार्थक होगा तथा वे इस निन्दनीय कुकृत्य को तिलांजलि देकर गुरुवाणी में विश्वास रखते हुए प्रायश्चित कर श्रीपाल महाराज की तरह मोक्ष मार्ग पर प्रारूढ होंगे। जो लोग बीते हुए काल के इतिहास से कुछ सीखना ही नहीं चाहते वे वास्तव में अपने मनुष्य जीवन का सफल उपयोग करने में समर्थ नहीं हो सकते। इस वहद ग्रन्थ के प्रकाशन कराने में जिन दानवीरों ने प्राथिक सहायता कर अपनी नश्वर लक्ष्मी को जनश्वर बना लिया है, अब र पुण्य लाभ प्राप्त किया है उन सभी महानुभावों को मैं समिति की ओर से धन्यवाद करता हूँ। ग्रन्थ के संस्कृत श्लोक के प्रफ संशोधन में हमें डा० श्री शीतलप्रसादजी, प्राचार्य जैन संस्कृत महाविद्यालय जयपुर ने अपने अत्यन्त व्यस्त समय में से समय निकाल कर जो सहयोग दिया है उसके लिए मैं उनका हृदय से आभारी हूँ, आशा करता हैं कि वे भविष्य में भी हमें इस प्रकार का सहयोग देकर जनसाहित्य प्रकाशन के कटिन कार्य को सरल बनाते रहेंगे। ग्रन्थ की विषय सामग्री मेरे अल्पज्ञान की तुलना में अत्यधिक ऊँची है, फिर भी मैंने गुरुओं के आशीर्वाद से बालप्रयास किया है, अतः साधुगण, विद्वजन व पाठकगणों से निवेदन है कि बे त्रुटियों के लिए क्षमा करते हुए उन्हें शुद्ध कर अध्ययन करने का कष्ट कर तथा अपने सुझाबों से ग्रन्थ अनुवादिका परमपूज्य १०५ गणिनी आर्यिका श्री विजयामती माताजी को एवं समिति को अवगत करावें ताकि आगामी ग्रन्थों में और अधिक सुधार लाने में हमें प्रापका सहयोग भी प्राप्त होता रहे। ग्रन्थ में प्रकाशित सभी चित्र एबम् मुखपृष्ठ कथा पर आधारित काल्पनिक हैं, इन चित्रों को कलात्मक रूप देने के लिए चित्रकार श्री बी. एन. शुक्ला का भी मैं धन्यवाद [XIX
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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