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________________ सम्पादकीय श्री चन्द्र प्रभु जिनेन्द्राय नमः परम्पूज्य समाधि सम्राट चारित्र चक्रवर्ती १०८ प्राचार्य श्री आदिसागरजी महाराज (अंकलीकर), समाधि सम्राट बहुभाषी तीर्थभक्त शिरोमणि १०५ आचार्य श्री महावीरकीतिजी महाराज, निमित्त ज्ञान शिरोमणि १०८ प्राचार्य श्री विमलसागरजी महाराज, चारित्र चडामणि अध्यात्म बालयोगी कठोर तपस्वी १०८ आचार्य श्री सन्मति सागरजी महाराज, वात्सल्य रत्नाकर बालब्रह्मचारी १०८ गणघराचार्य श्री कुन्थुसागरजी महाराज, धर्मप्रभाविका, विदुषीरत्न सम्यग्ज्ञान शिरोमणि १०५ गगनी प्रायिका श्री विजयामति माताजी एवं लोक के समस्त प्राचार्य, उपाध्याय, मूनि. प्रायिका, क्षुल्लक क्षुल्लिकानों तथा तपस्वी सभी जन साधुओं के चरण कमलों में भाव सहित नतमस्तक त्रिवार नमोस्तु, नमोस्तु करता या समिति द्वारा प्रकाशित इस अष्टम ग्रन्थ श्री सिद्धचक्र पूजातिशय प्राप्त श्रीपाल चरित्र के प्रकाशन के विषय में दो शब्द पाठकों से निवेदन करता हूँ। दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मन्दिरों में बहुत से ऐसे ग्रन्थ हैं जिनका प्रकाशन समय पर नहीं हो सका था । ग्रन्थों में वरिंगत कथायें जो कि प्रामाणिक हैं उनके अध्ययन से हिन्दीभाषी क्षेत्र के जैन धर्मावलम्बी अभी तक वंचित रहे हैं। ग्रन्थ ताड़पत्रों पर संस्कृत अथवा वहाँ की स्थानीय भाषा में लिखे होने के कारण उनके प्रकाशन की ओर विशेष ध्यान अभी तक नहीं दिया गया था । परमपूज्य १०५ ग० प्रा० श्री विजयामती माताजी जो कई वर्षों से दक्षिण भारत के विभिन्न स्थलों पर बिहार कर रही हैं ने कठिन परिश्रम कर इन अप्रकाशित ग्रन्थों में चयन कर कुछ ग्रन्थों की हिन्दी टीका की । उनमें से कुछ मुख्य ग्रन्थ जसे महिपाल चरित्र, जिनदत्त चरित्र को हिन्दी टीका हमारी श्री दिगम्बर जैन बिजया ग्रन्थ प्रकाशन समिति, झोटवाडा जयपुर से प्रकाशित की गई। परमपूज्य माताजी को प्रेरणा मे दानदाताओं से प्रकाशन कार्य को सुलभ बनाने में आर्थिक सहायता निरलर मिलती रही है । इन्हीं अप्रकाशित ग्रन्थों में से प्रस्तुत ग्रन्थ श्री सिद्धचक्र पूजातिशय प्राप्त श्रीपाल चरित्र है, इसके लेखक परमपूज्य १०८ आचार्य श्री सकलकोतिजी महाराज हैं । यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा हुआ था जिसका हिन्दी रूपान्तर परमपूज्य १०५ ग० आ० श्री विजयामति माताजी ने किया है । आपकी भाषा इतनी सरल एवं सुवोध है कि पढ़ने वाले के मन पर उसकी छाप छोड़े बिना नहीं रहती । यही कारण है कि पिछले ग्रन्थों की सर्वत्र अत्यधिक XVIII]
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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